Editorials : मानसिक सेहत हो प्राथमिकता



अवसाद, चिंता और तनाव की वजह से देश में बढ़ती आत्महत्या की घटनाएं मानसिक स्वास्थ्य के बड़े संकट को इंगित करती हैं. भारत विश्व में सबसे अधिक अवसादग्रस्त देश है तथा आत्महत्या के मामलों में शीर्ष के देशों में शुमार है. विभिन्न शोधों का आकलन है कि लगभग 15 करोड़ भारतीय मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं से जूझ रहे हैं तथा उनमें से महज तीन करोड़ को ही किसी तरह की चिकित्सकीय मदद मिल पा रही है. यह एक तथ्य है कि हर एक आत्महत्या यही बताती है कि बहुत सारे लोग ऐसी स्थिति में हैं कि वे अपनी जान ले सकते हैं. आंकड़ों को देखें, तो 1990 में दुनियाभर में महिलाओं में होनेवाली आत्महत्याओं में भारत के मामले 25.3 फीसदी थे, लेकिन 2016 में यह अनुपात बढ़ कर 36.6 फीसदी जा पहुंचा.

इस अवधि में पुरुषों का अनुपात 18.7 से बढ़ कर 24.3 फीसदी हो गया. आत्महत्याओं के पीछे अनेक सामाजिक, आर्थिक और व्यक्तिगत कारण हो सकते हैं, किंतु अंततः यह एक मानसिक स्वास्थ्य का मामला है. हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं है और उसमें भी मानसिक स्वास्थ्य के प्रति उपेक्षा एवं उदासीनता का भाव है. ऐसी समस्याओं का सामना कर रहे एक लाख लोगों पर औसतन 0.301 मनोचिकित्सक उपलब्ध है. ऐसे में कोई चाहे भी कि वह मेडिकल मदद ले, बहुत संभव है कि उसके आसपास ऐसे विशेषज्ञ ही न हों. इसी तरह से मानसिक परामर्शदाताओं की भी बड़ी कमी है.


लेकिन इस संदर्भ में सबसे बड़ी बाधा सामाजिक स्तर पर है. जागरूकता और संवेदनशीलता के अभाव में लोग अव्वल तो मानसिक परेशानियों को गंभीरता से नहीं लेते, और अगर वे अपनी मुश्किलों को साझा भी करना चाहें, तो सामाजिक समझ आड़े आ जाती है. हमारे समाज में ऐसे लोगों को तिरस्कार या उपेक्षा के भाव से देखा जाता है और उनसे दूरी बनाकर रखने की कोशिश की जाती है. इस वजह से बहुत सारे परेशानहाल लोग अपनी समस्या साझा करने की जगह घुटन में रहने को विवश हो जाते हैं. ऐसे में जो समस्या सामान्य बातचीत, परस्पर सहयोग या मामूली मेडिकल मदद से हल हो सकती है, वह आत्मघाती बनती जाती है.

समाज को ऐसे पूर्वाग्रह से मुक्त होना होगा क्योंकि देश की आबादी का लगभग 15 फीसदी हिस्सा मानसिक परेशानी की जकड़ में है. यदि परिवार, सगे-संबंधी, आस-पड़ोस के लोग ही समाधान के लिए हाथ नहीं बढ़ायेंगे, तो फिर अवसाद में जी रहे लोगों को बचाना मुश्किल हो जायेगा. हमारी व्यापक संवेदशीलता ही लाखों लोगों को नया जीवन दे सकती है. जागरूकता और संवेदनशीलता के आधार पर ही स्वास्थ्य सेवा में मानसिक स्वास्थ्य के आवश्यक महत्व को स्थापित किया जा सकता है. यदि आपके आसपास कोई ऐसी समस्या से जूझ रहा है, तो उसका मजाक उड़ाने और उसे अपमानित करने के बजाय आप उसका हौसला बढ़ाएं, मददगार बनें और जरूरी हो, तो उसके लिए मेडिकल सहयोग की व्यवस्था करें. यही जरूरी है.

सौजन्य : प्रभात खबर 
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Editor - MOHIT KUMAR

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