ग्राम समाचार, भागलपुर। परिधि के बैनर तले रविवार को महिला कविता गोष्ठी का आयोजन स्थानीय कला केंद्र में किया गया। महिला कविता गोष्ठी का आयोजन महिला दिवस सप्ताह के अवसर पर किया गया। कार्यक्रम का संचालन परिधि की संगीता ने किया जबकि अध्यक्ष मंडली में डॉ अलका सिंह, छाया पांडेय एवं रेणु घोष थी। संचालन करते हुए संगीता ने कहा कि साहित्य संस्कृति कला की अपनी सत्ता होती है। इस सत्ता पर भी महिलाओं का अधिकार हो इसके लिए हम लगातार सक्रिय हैं। स्वागत करते हुए परिधि की सुषमा ने कहा कि महिलाएं प्राकृतिक रूप से सृजनशील होती हैं। परिधि लगातार महिला कविता गोष्ठी का आयोजन कर महिलाओं की रचनात्मक सृजनात्मकता बढ़ाने में लगी है। महिलाओं ने हिंदी और अंगिका में प्रेम, दंगा, विभेद और महिला हिंसा पर आधारित कविताऐं सुनाई। अलका सिंह ने अपने कविता-अपने राम के साथ खुश रह लेती है औरतें, संयुक्ता भारती ने कविता- आज के आलोक में कुछ ढूंढती है औरतें सुनाई वही, सीनू कल्याणी ने अपनी कविता कहती हूं मैं आज गरज कर सब बेटों की माओं से, तहजीब सिखाए बेटों को वह चले न टेढ़ी राहों पे" द्वारा पितृसत्तात्मक व्यवस्था पर प्रहार किया। अध्ययक्षीय बातें करते हुए अलका सिंह ने कहा कि प्रकृति को भी विभेदपूर्ण बना दिया गया है। ऋतुओं का राजा वसंत खिलखिलाता हुआ और ऋतुओं की रानी वर्षा रोती हुई। कवित्री पिंकी मिश्रा ने सांप्रदायिक परिदृश्य पर अपनी कविता रखते हुए कहा कि "किसी का मकान जला, किसी का दुकान जला जिसने आग लगाई कहो उसका क्या जला"। कवित्री पूनम पांडे ने अपनी कविता "एक औरत जो किसी भी रिश्ते में सफल नहीं हो पाती है और समाज के नजरिए से एक अच्छी औरत की परिभाषा में नहीं डल पाती है। इन सब नाकामियों के बावजूद भी वह अधिक है पहाड़ की तरह" से महिलाओं के चुनौतियों पर प्रकाश डाला। शिखा एमजेएनए ने अपनी कविता -पति कभी सती नहीं होती, सती तो पत्नियां होती हैं, अपने ऊपर अत्याचारों का दिन-रात सामना करती हैं, फिर भी उनकी लंबी आयु की दिन-रात कामना करती है" से नारी के पारिवारिक और सामाजिक स्थिति का चित्रण कविता गोष्ठी में रखा। मृदुला सिंह ने नारी कभी कमजोर नहीं होती उसे कमजोर बना दिया है, छाया पांडे ने बाल विवाह पर कविता सुनाते हुए कहा "सोलह बरस की तेरी बिटिया करती है गुहार, बाबुल ना पहनाओ जोड़ा लेने दो फूलों सा आकार "। अधिवक्ता रेणु घोष ने भी अपनी कविता उड़ने दो उसे, बढ़ने दो अधिकार का पाठ पढ़ने दो" सुनाया। वहीं अंजू ने चांद की भांति टुकड़ा टुकड़ा होकर कहना है उसे चांद से कि हमें पूरा आकार चाहिए से महिलाओं की जिजीविषा और आकांक्षाओं को सामने रखा। युवा कवित्री आरजू ने अपनी कविता" सफर में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो, सभी हैं भीड़ में शामिल तुम निकल सको तो चलो" सुनाया तो कोमल ने कविता- नारी है बेचारी नहीं, कोमल है पर हारी नहीं" कविता में आधी आबादी की आगे बढ़ने की उत्कट इच्छा को शब्दों में पिरोया। परिधि द्वारा आयोजित महिला कविता गोष्ठी में धन्यवाद आज़मी शेख ने किया। इस अवसर पर चंदा देवी, लाडली राज, सुषमा, श्वेता भारती, पुष्पा देवी, शोभा श्रीवास्तव, शारदा श्रीवास्तव, शिखा पांडे, पूनम श्रीवास्तव,सौम्या मिश्रा, दुर्गा राज, मुस्कान आदि मौजूद थीं।
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