जी. पार्थसारथी
अठारह जनवरी को चीन के सर्वोच्च नेता शी जिनपिंग म्यांमार की आधिकारिक यात्रा पर पहुंचे, यह वहां 19 वर्ष के अंतराल के बाद किसी बड़े चीनी नेता का दौरा है। राष्ट्रपति जिनपिंग ने इस यात्रा में म्यांमार की बड़ी ‘त्रिमूर्तियों’ यानी राष्ट्रपति विन मिंत, आंग सान सू की और देश के अपरोक्ष सर्वेसर्वा वरिष्ठ जनरल मिन ओंग ह्लैंग से भेंट की है। यह यात्रा ऐसे समय में हुई है जब दक्षिण चीन समुद्री क्षेत्र में चीन के एकतरफा समुद्री सीमा संबंधी दावों का पड़ोसी देश वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई, फिलीपींस, ताईवान और इंडोनेशिया विरोध कर रहे हैं। इसी तरह के विवाद चीन के अपने उत्तरी पड़ोसी मुल्कों जापान और दक्षिण कोरिया से भी हैं। चीन अपने सीमा संबंधी विवादों पर पड़ोसी मुल्कों को हड़काने के लिए सैन्य दबाव बनाने से भी गुरेज नहीं करता है है। यह सब वह समुद्री सीमाओं को लेकर कानून बनाने वाली अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक ट्रिब्यूनल के आदेश के बावजूद कर रहा है, जिसने फिलीपींस की समुद्री सीमा के अंदर क्षेत्र पर बढ़ा चढ़ाकर पेश किए गए चीनी दावों को खारिज कर दिया था।
म्यांमार में शी जिनपिंग ने उन प्रांतीय नेताओं से भी मुलाकात की जहां चीन द्वारा बनाई जा रही बड़ी परियोजनाएं, जैसे कि म्याइतीसोने बांध से पैदा हुई गंभीर पर्यावरणीय एवं अन्य चिंताएं उठ खड़ी हुई हैं। लेकिन राष्ट्रपति शी का मुख्य ध्यान प्रस्तावित चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा परियोजना पर ज्यादा रहा, जिसके तहत चीन के युन्नान प्रांत को बंगाल की खाड़ी के तट पर बने बंदरगाह क्याकपउ से जोड़ा जाएगा। दोनों मुल्कों के बीच अन्य आर्थिक परियोजनाओं को लेकर 33 प्रस्तावों के सहमति पत्रों पर भी हस्ताक्षर हुए हैं, इनमें 13 बुनियादी ढांचों को विकसित करने को लेकर हैं।
अगर कोई देश अपने यहां चीनी कर्ज से बनने वाली परियोजनाओं की किश्तें और सूद चुकाने में असमर्थ रहा है, जैसा कि श्रीलंका के हम्बनतोता बंदरगाह के मामले में हुआ है, तो चीन एक रिवायती सूदखोर की भांति उन सुविधाओं को अपने नियंत्रण में ले लेता है। इसको लेकर म्यांमार को भी चिंता है, इसीलिए उसने चीनी मदद से बनने वाली परियोजनाओं के आकार और लागत में कटौती की है, क्योंकि ये परियोजनाएं सफेद हाथी भी सिद्ध हो सकती हैं।
इसी बीच चीन एक ओर म्यांमार के अंदरूनी मामलों में दखलअंदाजी भी कर रहा है, इसके लिए वह म्यांमार से विद्रोह कर रहे अनेक सशस्त्र पृथकतावादी गुटों को अपनी सीमा के अंदर सुरक्षित ठिकाने मुहैया करवा रहा है तो दूसरी ओर वह इन संगठनों और म्यांमार सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका भी निभाना चाहता है। चीन इन गुटों में सबसे बड़े संगठन मैंडरिन भाषी यूनाइटेड वॉ स्टेट आर्मी को, जिसके सदस्य लगभग 23000 हैं, न केवल हथियार, प्रशिक्षण बल्कि वित्तीय मदद भी देता है। उक्त सशस्त्र पृथकतावादी गुट चीन की सीमा से सटे म्यांमार के शान प्रांत में अपनी गतिविधियां चलाए हुए हैं। चीन ने भारत और म्यांमार से लगने वाले अपने युन्नान प्रांत की भूमि इन दोनों मुल्कों के विद्रोही संगठनों के संयुक्त सशस्त्र गठजोड़ को अपने यहां पनाह देने को मुहैया करवा रखी है। म्यांमार के विद्रोही गुटों का गठजोड़ जो खुद को ‘नॉर्दन एलायंस’ कहता है, वह भारत-म्यांमार सीमा के आरपार होकर अपने काम को अंजाम देता है। ये लोग भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के विद्रोही संगठनों जैसे कि उल्फा और एनएससीएन (खपलांग) गुट से सहयोग लेते-देते रहते हैं।
चीन की तेल आपूर्ति का बड़ा भाग फारस की खाड़ी से मल्लका जलडमरू से होता हुआ समुद्री मार्ग से होता है। जो एक चिंता चीन को साफ तौर पर सताती है, वह यह कि भारत और इसके बाकी ‘क्वाड’ सहयोगी (यह चार देशों यानी अमेरिका-भारत-ऑस्ट्रेलिया–जापान का गठजोड़ है) अपने अन्य सहयोगियों इंडोनेशिया और वियतनाम से मिलकर मल्लका जलडमरू के सामरिक मार्गों की नाकाबंदी कर उसके तेल सप्लाई मार्ग को छिन्न-भिन्न कर सकते हैं। समुद्री सीमा संबंधी विवादों को लेकर चीन और इंडोनेशिया के बीच गंभीर मनमुटाव और तनाव बना हुआ है। चीन भारत की नौवहनीय क्षमता को टक्कर देने की खातिर और समूचे हिंद महासागर इलाके में अपनी नौसेना की पहुंच एवं आकार को विस्तार दे रहा है। पाकिस्तान के ग्वादर और दिजबाउती बंदरगाहों का इस्तेमाल करते हुए वह हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बढ़ाने में जुटा है। अपनी इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने में वह श्रीलंका और मालदीव को अपने यहां चीनी नौसन्य अड्डा बनने देने के लिए ‘प्रेरित’ कर रहा है।
राष्ट्रपति शी की यात्रा आंग सान सू की के लिए विकट समय पर हुई है। वे विश्व न्यायालय में म्यांमार सेना पर रोहिंग्या मुसलमानों के कथित कत्लेआम के आरोपों पर हुई सुनवाई के दौरान निजी तौर पर उपस्थित हुई हैं। एक समय मानवाधिकारों पर अमेरिका, यूके और यूरोपियन यूनियन का मनपंसद प्रतीक-व्यक्तित्व रही सू की को अब पश्चिमी जगत में मानवाधिकार हनन के लिए खासी निंदा झेलनी पड़ रही है। कभी उनके समर्थक रहे म्यांमार के लोग अब उन पर सेना के कृत्यों को घिघियाते हुए ढांपने वाले किरदार का ठप्पा लगा रहे हैं। यह सब इसके बावजूद हो रहा है जब सू की ने एक तरफ राष्ट्रीय एकता तो दूसरी ओर पश्चिमी जगत में अपनी अच्छी छवि बरकरार रखने के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया है।
रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी समस्या के मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में अलग-थलग पड़ने के कारण म्यांमार के पास राजनयिक एवं आर्थिक मदद पाने हेतु चीन की ओर झुकाव अपनाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। इधर भारत को, अपने स्तर पर गंभीरता से ऐसे राजनयिक प्रयास करने होंगे ताकि ऐसे हालात बन सकें ताकि भारत और बांग्लादेश में पनाह लिए म्यांमार के राखिने प्रांत से ताल्लुक रखने वाले लगभग 7,50,000 रोहिंग्याओं की अपने घरों में सुरक्षित वापसी और पुनर्वास हो सके।
हमारे उत्तरी-पूर्वी राज्यों के विद्रोहियों को नाथने के मामले में म्यांमार भारतीय प्रयासों का लगातार साथ देता आया है, इसके बदले में भारत ने भी अपने यहां छिपने वाले म्यांमार के ‘अराकान आर्मी’ नामक विद्रोही गुट पर कार्रवाई करने में उसकी मदद की है। ये विद्रोही बंगाल की खाड़ी में भारत की सहायता से विकसित किए गए सित्त्वे बंदरगाह क्षेत्र में अपनी गतिविधियां चलाते हैं। रोचक बात यह है कि सित्त्वे बंदरगाह उस क्याकपउ से ज्यादा दूर नहीं है, जिसका विकास चीन कर रहा है! ‘बिम्सटेक’ आर्थिक सहयोग संगठन, जिसके मुख्य ध्येय में बंगाल की खाड़ी से सटे तटीय और तटविहीन राज्यों, देशों के बीच संपर्क बनाना एक है, उसने अब नया सामरिक महत्व अर्जित किया है। ‘बिम्सटेक’ अपने दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी एशियाई सदस्य देशों के बीच कड़ी का काम करता है, जो आगे ‘सार्क’ या फिर ‘आसियान’ संगठन के सदस्य हैं।
भारत ने हाल ही में ‘किलो’ श्रेणी की पनडुब्बी म्यांमार को सौंपी है, जिसका आधुनिकीकरण विज़ाग स्थित हिंदुस्तान शिपयार्ड में किया गया है। इन पनडुब्बी को म्यांमार अंडमान सागर में सुरक्षा अभियानों हेतु तैनात करेगा। यह बताता है कि दोनों देश बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में समुद्री मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहते हैं। यह बात भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के विद्रोहियों और म्यांमार के काचिन प्रांत के पृथकतावादियों से निपटने में दोनों की सेनाओं के बीच सीमापारीय सहयोग को भी सुदृढ़ करती है।
लेखक पूर्व राजनयिक हैं।
सौजन्य -दैनिक ट्रिब्यून। ।
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