अब जबकि दिल्ली के विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार थम चुका है और सभी प्रमुख पार्टियां मतदाताओं को अपनी ओर झुकाने के लिए अपने लगभग सभी महkवपूर्ण मुद्दे उठा चुकी हैं तथा सारे पैंतरे चल चुकी हैं‚ तब सरकार और विपक्ष में बैठने के अर्थ में चुनावी नतीजों की कयासबाजी में जाए बिना भी‚ इस चुनाव के एक नतीजे को बल्कि कहना चाहिए कि इस चुनाव की एक हार को तो‚ साफ–साफ देखा जा ही सकता है। ॥ यह हार है‚ भारत के उस सपने की जो आजादी की एक सदी से लंबी लड़ाई में से निकला था। यह हार है उस सपने की‚ जिसे आंबेडकर की अगुआई में बनाए गए संविधान में पुख्ता करने की कोशिश की गई थी। और इस हार का साIय है इसी दिल्ली में गढ़े गए शाहीनबाग के प्रतीक के साथ। उन दोनों मुख्य राजनीतिक ताकतों का सलूक‚ जिनके बीच ही इस चुनावी मुकाबले के सिमट जाने की सचाई को शायद ही कोई अनदेखा कर सकता है‚ लेकिन शाहीनबाग है क्याॽ आखिरकार‚ क्या चीज है जिसने दिल्ली के बाहरी‚ अर्द्ध–उपेक्षित‚ आर्थिक रूप से साधारण लोगों की‚ मुख्यतः मुस्लिम आबादी वाले इस मोहल्ले को‚ दिल्ली के विधानसभाई चुनाव का इतना केंद्रीय मद्दा बना दिया है कि योगी आदित्यनाथ‚ गृहमंत्री अमित शाह और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी चुनाव प्रचार में‚ शाहीनबाग के समर्थन और विरोध को इस चुनाव में जनता के फैसले का केंद्रीय मुद्दा बनाने के लिए जोर लगाना पड़ा है। योगी के एक भाषण में ४८ सेकेंड में ८ बार पाकिस्तान का नाम लेने के रिकार्डतोड़ कारनामे को अगर छोड़ दिया जाए तो‚ केंद्र की सत्ताधारी पार्टी के शीर्ष नेताओं ने‚ जो संविधान की शपथ लेकर देश में सत्ता के शीर्ष पदों पर भी बैठे हुए हैं‚ शाहीनबाग का नाम जितनी बार और जितनी नफरत से लिया‚ उतनी बार और उतनी नफरत से शायद पाकिस्तान का नाम भी नहीं लिया होगा। ॥ सत्ता में बैठी भाजपा के लिए शाहीनबाग वह लाठी है‚ जिससे वह इस चुनाव में दिल्ली में सरकार में बैठी आम आदमी पार्टी को पीटने की कोशिश कर रही थी। अधिकांश टिप्पणीकार इस पर एकमत हैं और अधिकांश चुनाव–पूर्व सवæक्षणों ने इसकी पुष्टि ही की है कि दिल्ली के अन्यथा लगभग एकतरफा चुनाव में‚ जिसमें आम आदमी पार्टी के सामने भाजपा कहीं मुकाबले में दिखाई ही नहीं देती थी‚ इस हथियार से भाजपा ने कम–से–कम अपने कोर वोट को न सिर्फ पुख्ता किया है बल्कि कुछ–न–कुछ बढ़ाया भी है। इसी का नतीजा है कि चुनाव प्रचार के आखिरी चरण तक भाजपा‚ कम–से–कम एक हद तक मुकाबले में खड़ी दिखाई देने लगी थी। और इस हथियार को गढ़ा गया है‚ शाहीनबाग को मुसलमान का और मुसलमान को हिंदुओं के लिए खतरे का पर्याय बनाने के जरिए। और जैसाकि भाजपा और संघ परिवार का कायदा ही है‚ आसानी से इस खुल्लम–खुल्ला सांप्रदायिक दुहाई पर‚ देश की सुरक्षा के लिए खतरे‚ सेना के सम्मान आदि‚ आदि का मुलम्मा चढ़ा दिया गया। अचरज की बात नहीं है कि शाहीनबाग नाम के इसी खतरे का हथियारों से मुकाबला करने की उत्तेजना में‚ जामिया तथा शाहीनबाग में शांतिपूर्वक सत्याग्रह कर रहे छात्रों व महिलाओं पर गोलियां चलाने जा पहुंचे दोनों नौजवान‚ इसका एलान कर रहे थे कि इस देश में हिंदुओं की ही चलेगी और दूसरे किसी को अपने मन की नहीं करने दी जाएगी! ॥ बहरहाल‚ अगर भाजपा तथा संघ परिवार द्वारा शाहीनबाग को दिल्ली में अपनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी‚ आम आदमी पार्टी के खिलाफ हमले का हथियार बनाया जा रहा था और इस चुनाव को शाहीनबाग को बिरयानी खिलाने वालों बनाम कांवरियों की यात्रा में बाधा डालने वालों या आतंकवादियों को गोली खिलाने वालों के बीच चुनाव बताया जा रहा था‚ तो आम आदमी पार्टी क्या कर रही थीॽ संक्षेप में कहें तो वह सिर्फ इस हथियार से अपना बचाव कर रही थी। उनकी सांप्रदायिक प्रस्तुति के खिलाफ शाहीनबाग के साथ खड़े होना‚ उसे हिंदुओं के लिए खतरा बनाने के भाजपा तथा संघ परिवार के इस खेल को चुनौती देना तो दूर‚ आम आदमी पार्टी उसके दानवीकरण का अनुमोदन ही करती नजर आ रही थी। आम आदमी पार्टी की सिर्फ और सिर्फ अपने काम की दुहाई देने की यह कार्यनीति‚ चुनावी तौर पर कितनी कामयाब होती है‚ यह तो ११ फरवरी को ही पता चलेगा। ॥ हां‚ केंद्र की मोदी सरकार की रोजगार समेत जनता के रोजमर्रा के जीवन के प्रमुख मसलों पर घोर विफलता को देखते हुए‚ जो बढ़ते आर्थिक संकट के साथ बड़ी मुखरता से सामने आ गई है‚ आम आदमी पार्टी की यह कार्यनीति चुनावी तौर पर विफल हो जाए‚ तभी आश्चर्य होगा। जाहिर है कि केजरीवाल सरकार की सस्ते बिजली‚ पानी से लेकर सार्वजनिक शिक्षा व स्वास्थ्य में सुधार तक के क्षेत्रों में उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। बहरहाल‚ अगर यह कार्यनीति चुनावी तौर पर सफल भी हो जाए‚ तब भी इस सफलता के लिए आम तौर पर देश और खासतौर पर दिल्ली की जनता को‚ एक बड़ी कीमत चुकानी पडÃ रही होगी। यह कीमत इस सचाई मेंे निहित है कि संघ–भाजपा के मुसलमानों के दानवीकरण के आख्यान को‚ आप पार्टी की जीत कहीं से भी चुनौती नहीं दे रही होगी और इस तरह दिल्ली की राजनीति की मुख्यधारा में इस दानवीकरण को लगभग बिना किसी चुनौती के कामनसेंस बन जाने दिया जाएगा। इसके दिल्ली के भविष्य के लिए खतरनाक निहितार्थ हैं। ॥ इसे आप नेतृत्व के दब्बूपन और राजनीतिक अवसरवाद का ही सबूत माना जाएगा कि उसने अल्पसंख्यकों समेत धर्मनिरपेक्ष ताकतों के पास दूसरा विकल्प ही नहीं होने के भरोसे के सहारे सांप्रदायिक आख्यान से टकराने से बचते हुए अपने काम की दुहाई का ही सहारा लिया और इस तरह सांप्रदायिकता के जहर को कुछ और फैल जाने दिया। यह तब था जबकि वह साहसपूर्वक अपने काम की ताकत के बल पर उक्त सांप्रदायिक आख्यान को ही चुनौती दे सकता था और इस प्रक्रिया में जनतांत्रिक आधार पर अपनी ताकत भी मजबूत कर सकता था। यह नुकसान इसलिए और भी बड़ा है कि बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक महिलाओं व युवाओं की हिस्सेदारी‚ तिरंगे झंडे‚ संविधान के तर्क और धर्मनिरपेक्षता की दुहाई पर खड़ा शाहीनबाग‚ शांतिपूर्ण सत्याग्रह का ऐसा प्रतीक है‚ जो स्वतंत्रता के बाद गांधी की सत्याग्रह की कल्पना के सबसे नजदीक पड़ता है। जनतंत्र के ऐसे प्रतीक को अगर मुसलमान बनाकर उसका दानवीकरण किया जा सकता है‚ तो जनतंत्र गंभीर रूप से खतरे में है। बेशक‚ भाजपा की हार से इस खतरे के प्रतिरोध की गुंजाइश बढ़ेगी। ॥
सौजन्य - राष्ट्रीय सहारा।
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