Bhagalpur News:भागलपुर के लाल शहीद रतन कुमार ठाकुर पर एक विशेष रिपोर्ट (खामोश है अंगप्रदेश के लाल शहीद रतन ठाकुर का गांव)


ग्राम समाचार, भागलपुर। 14 फरवरी 2019 को पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए 45 जवानों में भागलपुर जिले के सन्हौला प्रखंड के मदारगंज स्थित रतनपुर गाँव के वीर जवान रतन ठाकुर भी शामिल थे। मदारगंज गाँव तो छोटा जरूर है किंतु यहाँ के दिलेर बेटे रतन ठाकुर कर्तव्य की बलिवेदी पर चढ़ गए और अपने साथ गांव का भी नाम अमर कर गए। इस घटना के बाद कश्मीर, दिल्ली, पटना व भागलपुर के साथ-साथ पूरे देश भर के राजनेताओं ने अपना चेहरा चमकाने के लिए तरह-तरह की घोषणाओं व वायदों की झड़ी लगा दी। किसी ने कहा कि शहीद के गांव में शहीद के नाम का अस्पताल बनेगा। किसी ने उनके नाम पर कालेज बनाने की बात कही। किसी ने कहा कि शहीद के नाम से सड़क होगा। किसी ने कहा कि शहीद की एक स्मारक बननी चाहिए तो, किसी ने शहीद के गांव में एक शहीद के नाम का द्वार बनाने की बात की। सभी नेताओं की मानें तो शहीद का गांव में विकास ही विकास होगा। अभी विधानसभा चुनाव का माहौल है। ऐसे में प्रत्याशियों से लेकर सरकार तक खूबियाँ व कमियाँ गिनाने में लगे हैं। किंतु गांव के धरातल पर ऐसा कुछ भी नहीं दिखा। घटना के वर्ष हो गए अभी तक किसी प्रकार की सुविधा से शहीद के गांववासी वंचित हैं। शहीद रतन ठाकुर के पिता रामनिरंजन ठाकुर के अनुसार वे एक स्मारक निर्माण के लिए कई कार्यालयों का चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें अभी तक कोरा आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला है। शहीद के गांववासियों व जिलेवासियों को अपने वीर सपूत रतन ठाकुर की वीरगति पर गर्व है। आज कहलगाँव, सन्हौला की धरती से देशप्रेम की ज्वाला धधक रही है। इस क्षेत्र के हर एक युवाओं में शहीद रतन ठाकुर ने प्रेरणा भरने का काम किया है। परंतु स्थानीय जनप्रतिनिधियों व प्रशासन की उदासीनता के कारण लोगों में नाराजगी है। क्षेत्र के लोगों का कहना है कि शहीद के लिए स्मारक अत्यंत आवश्यक है, जिनसे अन्य युवाओं को भी देश के लिए लड़ने और मरने की प्रेरणा मिलती रहेगी। शहीद रतन ठाकुर की शहादत को यू ना जाने देंगे उन्हें मोदी जी और अमित शाह से आशा है कि पाकिस्तान से बदला हम लेंगे जिससे शहीद की वीरगति सार्थक हो सके। शहीद रतन की पत्नी, दो बच्चे, पिता, छोटा भाई और बहन है। परिवार के सभी लोग भागलपुर शहर के लोदीपुर रोड में गोपाल कुमार के मकान में किराए के मकान में रहते हैं। पर रतन के पिता का कहना है कि सीआरपीएफ़ और बिहार सरकार की घोषणाएं पूरी कर दी गई है। लेकिन केंद्र सरकार की ओर से अब तक कुछ नहीं दिया गया है। उनका कहना है कि मेरे बेटा देश के लिए कुर्बान हुआ। बिहार सरकार ने केवल मुआवज़े की रकम देकर पीछा छुड़ा लिया। लेकिन एक शहीद के लिए जो किया जाना चाहिए और जिस तरह से किया जाना चाहिए वह बिल्कुल नहीं हो रहा है। रतन कुमार के दो बेटे हैं। बड़े का नाम कृष्ण है जो नर्सरी में पढ़ता है। रतन के शहीद होने के समय छोटा बेटा मां के गर्भ में था। पिता बताते हैं कि रतन के श्राद्ध तक हमारे यहां हर रोज़ बहुत से लोग आया करते थे नेता, मंत्री, अधिकारी के साथ साथ मीडिया वालों का तो जमावड़ा लगा रहता था। अब एक साल हो चले हैं, हमारे घर सरकार की तरफ से कोई प्रतिनिधि नहीं आया। हमें इस बात की बेहद तक़लीफ़ है कि जब मंत्रियों और नेताओं को हमारे बेटे की ज़रूरत थी, उन्होंने उसका खूब नाम लिया। लेकिन जब हमें उनकी जरूरत है तो वे साथ खड़े भी नहीं नज़र आते। बिहार सरकार ने रतन के शहीद होने पर यह घोषणा की थी कि वह उनके आश्रितों में से किसी एक को नौकरी देगी और परिजनों के रहने के लिए एक पक्का फ्लैट भी देगी। बिहार सरकार की ओर से नौकरी देने की पेशकश की गई। राजनंदिनी ने उसी वक्त लिखकर दे दिया कि उनकी जगह रतन के छोटे भाई मिलन को नौकरी दे दी जाए। राज्य सरकार ने ये वादा पूरा कर दिया है। अब मिलन पंचायत विकास विभाग में सरकारी कर्मचारी हैं। लेकिन फ्लैट आज तक नहीं दिया गया। यह वादा किया गया था कि रतन के नाम से गांव में शहीद स्मारक बनाया जाएगा। उसके नाम से सड़क बनेगी। 14 फ़रवरी के दिन हमने अपने बूते पर बेटे को श्रद्धांजलि देने के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया है। उसके लिए भी सरकार और प्रशासन की तरफ से हमारे पास कोई नहीं आया। रतन के पिता पुलवामा हमले की जांच को लेकर केंद्र सरकार की भूमिका से नाखुश दिखे। बिहार सरकार की तरफ़ से कुल 36 लाख रुपये के मुआवज़े का ऐलान किया गया था। यह रकम पैसा मिल चुका है। केंद्र सरकार की तरफ़ से मुआवज़े का तो कोई वैसा ऐलान नहीं किया गया था, लेकिन शहीदों के परिवारों को केंद्र सरकार की तरफ से वित्तीय पैकेज मिलता है, उसके अनुसार हर परिवार को 35 लाख रुपये का मुआवज़ा देना है। इसके अनुसार स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया भी परिवारों को 30 लाख रुपये देगा। लेकिन सीआरपीएफ के जवान रतन कुमार ठाकुर आधिकारिक तौर पर "शहीद" की श्रेणी में ही नहीं आते हैं। एक्शन में मारे जाने वाले अर्ध सैनिक के जवान शहीद की श्रेणी में नहीं आते हैं। इस मामले में रतन के पिता कहते हैं, कि सरकार यदी यह नहीं मानती कि जवान शहीद हुए हैं तो वही सरकार और उनके मंत्री-नेता चुनाव के समय शहीदों के नाम पर वोट क्यों मांगते हैं। बेटे को शहीद तो बना दिया गया लेकिन लेकिन सरकार उन्हें शहीद नहीं मानती है। केन्द्र सरकार से हमें ऐसी उम्मीद नहीं थी। रतन ठाकुर को सरकार ने भले "शहीद" का आधिकारिक दर्जा नहीं मिला है, लेकिन भागलपुर के लोगों के लिए वह हीरो हैं। रतन के पिता कहते हैं कि स्थानीय लोगों का सहयोग उन्हें हमेशा मिलता रहा है। यहाँ के लोगों ने मेरे पोते का नामांकन शहर के सबसे प्रतिष्ठित स्कूल में कराया है। किताब-कॉपी से लेकर यूनिफॉर्म और पूरी पढ़ाई की फ़ीस को स्कूल प्रबंधन ने माफ़ कर दिया है। 
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Editor - Bijay shankar

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- राजीव कुमार (Editor-in-Chief)

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