Editorials: दरों में कटौती से इतर

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने बाजार के अनुमानों के मुताबिक ही नीतिगत दरों को अपरिवर्तित छोडऩे का निर्णय लिया है। मुद्रास्फीति का जो परिदृश्य सामने आ रहा है, उसने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है। खुदरा मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति दिसंबर में 7.4 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। जबकि सब्जियोंं, खासकर प्याज की कीमतों में दिसंबर की उछाल से गिरावट आने की संभावना है। मुद्रास्फीति में गिरावट निकट भविष्य में दालों और अन्य प्रोटीन उत्पादों की बढ़ी कीमतों के आधार पर थम सकती है। दूरसंचार कीमतों में समायोजन भी मूल मुद्रास्फीति पर लागत का दबाव डाल रहा है। हालांकि यह चार फीसदी के इर्दगिर्द बना हुआ है।

एमपीसी ने कहा है कि भविष्य में कदम उठाने के लिए नीतिगत गुंजाइश बरकरार है। केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही तक मुद्रास्फीति घटकर 3.2 फीसदी हो जाएगी। हालांकि काफी अनिश्चितता भी है। यदि मुद्रास्फीति में आरबीआई के अनुमान के मुताबिक कमी आती है तो वह नीतिगत दरों में 25 आधार अंक की कमी कर सकता है। उस स्थिति में रीपो दर 4.9 फीसदी हो जाएगी। मौद्रिक नीति के माध्यम से वृद्धि का इससे अधिक सहयोग करना मुश्किल होगा। यदि अनुमान से अधिक अवस्फीति होती है तो शायद कुछ गुंजाइश बन सकती है। ऐसा कोरोनावायरस के कारण वैश्विक वृद्धि में धीमापन आने से हो सकता है। केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था 6 फीसदी की दर से बढ़ेगी। चूंकि भविष्य में मौद्रिक राहत की गुंजाइश सीमित है इसलिए केंद्रीय बैंक अब पारेषण और ऋण बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। उदाहरण के लिए उसने वाहन, आवास और सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) को ऋण देने के मामले में बैंकों को 30 जुलाई, 2020 तक नकद आरक्षित अनुपात बरकरार रखने में राहत दी है।

केंद्रीय बैंक ने एमएसएमई के लिए एकबारगी पुनर्गठन योजना भी बढ़ा दी है तथा वाणिज्यिक अचल संपत्ति में परिसंपत्ति वर्गीकरण को शिथिल किया है। आरबीआई ने अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा मझोले उपक्रमों को दिए जाने ऋण का बाह्य मानकीकरण करने का भी निर्णय लिया है। यह अगले वित्त वर्ष के आरंभ में शुरू किया जाएगा। इन हस्तक्षेपों के अलावा केंद्रीय बैंक एक वर्ष और तीन वर्ष की अवधि के लिए दीर्घावधि की रीपो की व्यवस्था करेगा। करीब एक लाख करोड़ रुपये की इस राशि से बैंकिंग तंत्र में अधिक पैसा आएगा और ऋण दरों में कमी आएगी। लंबी अवधि के बॉन्ड और बैंक ऋण दर के मामलों में मौद्रिक पारेषण धीमा रहा है। मसलन 10 वर्ष के सरकारी बॉन्ड के मामले में प्रतिफल 76 आधार अंक तक घटा जबकि नीतिगत दर में 135 आधार अंक की कमी की गई।

कुल मिलाकर देखा जाए तो केंद्रीय बैंक ने गुरुवार को जो नीतिगत हस्तक्षेप घोषित किए हैं उनके पीछे इरादा पारेषण में सुधार लाने और बैंकिंग प्रणाली को ऋण देने के लिए प्रोत्साहित करने का है। परंतु इन उपायों से ऋण में सुधार होगा या नहीं यह देखना होगा। उदाहरण के लिए बाह्य मानक से बैंकों के ब्याज मार्जिन पर असर पड़ सकता है। हालांकि घोषणा के बाद प्रतिफल में कमी आई है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि लंबी अवधि की रीपो किस हद तक बैंकिंग तंत्र की मददगार रहेगी। ध्यान रहे करीब 3 लाख करोड़ रुपये मूल्य की नकदी तरलता मौजूद है। दीर्घावधि की दरें, उच्च सरकारी उधारी और घटती घरेलू बचत के कारण एक खास दायरे में रह सकती हैं। अब सरकार अनिवासी निवेशकों  के लिए विशेष प्रतिभूतियों की घोषणा करके बचत का आयात करना चाहती है। इससे मुद्रा की लागत कम करने में मदद मिलेगी लेकिन इससे केंद्रीय बैंक के नकदी और मुद्रा प्रबंधन के लिए चुनौती उत्पन्न हो सकती है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड। 

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Editor - न्यूज डेस्क, नई दिल्ली. Mob- 8800256688

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- राजीव कुमार (Editor-in-Chief)

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