Godda News: वर्ष 1890 में संथाल परगना के उपायुक्त आर. कास्टेयर्स ने पहली बार लगाया था हिजला मेला




ग्राम समाचार, गोड्डा ब्यूरो रिपोर्ट:-  संताल परगना के सुविख्यात हिजला जनजातीय मेला की परम्परा 135 साल पुरानी है।ब्रिटिश राज में 1890 ई. में तत्कालीन संताल परगना जिला के उपायुक्त रॉबर्ट आर. कास्टेयर्स ने हिजला मेला लगाने की परम्परा शुरू की थी।135 साल पुरानी परम्परा आज तक कायम है। दुमका शहर से करीब 3 किमी की दूरी पर मयूराक्षी नदी के तट पर लगने वाला इस मेला का आयोजन इस वर्ष 21 फरवरी से 28 फरवरी तक हो रहा है। 135 साल पहले 1890 में हिजला मेला लगाने का मकसद जनजातीय समाज की संस्कृति को को पहचान देना तो था ही, प्रशासन और आदिवासियों के बीच बन गई दूरी को पाटना भी था। 1855 के ऐतिहासिक संताल हूल के बाद से ही अंग्रेजी हुकूमत को यहां के आदिवासियों के साथ समन्वय बनाने की जरूरत महसूस की जा रही थी। 30 जून 1855 को हुए संताल हूल के बाद ही 22 दिसम्बर 1855 को संताल परगना जिला की स्थापना हुई थी और प्रशासनिक सुधार के कई कदम उठाए गए थे। संताल हूल के तीन दशक बीतने के बाद भी संताल परगना के आदिवासियों के साथ तत्कालीन अंग्रेज शासकों का जुड़ाव नहीं हो पा रहा था।आदिवासी उनसे कटे रहते थे।ऐसी ही परिस्थितियों में संताल परगना के उपायुक्त कास्टेयर्स ने जिला मुख्यालय दुमका में जनजातीय हिजला मेला लगाने की पहल की ताकि आदिवासियों को एक जगह एकत्रित कर उनसे सीधा संवाद कायम हो सके। 1890 के 3 फरवरी से हिजला मेला लगाने की शुरुआत हुई थी। मेला में आदिवासियों की कला-संस्कृति और परंपरा को उभारने के लिए उन्हें एक मंच मिला और अंग्रेजी शासकों को जनजातीय समाज के मिजाज को समझने और उनसे संवाद करने का एक अवसर मिला। आदिवासियों से संवाद कर अंग्रेज शासकों को उनसे संबंधित कानून बनाने में मदद मिली। पुराने लोग बताते हैं कि ‘हिज लॉ’ ही हिजला नाम का आधार बना। मयूराक्षी के तट पर जहां मेला लगता है,उस गांव का नाम भी हिजला है।गुजरते वक्त के साथ इस ऐतिहासिक हिजला मेला का स्वरूप और नाम तक बदल गया है। लगने वाले इस जनजातीय मेला को राजकीय दर्जा प्राप्त है। इसके साथ ही मेला का नाम राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव कर दिया गया है।

कभी सीएम करते थे मेला का उद्घाटन अब सबको सताता है अपशकुन का डर

अविभाजित बिहार के जमाने में दुमका के इस जनजातीय मेला का उद्घाटन-समापन मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक करते रहे हैं। राज्यपाल ए.आर. किदवई, जगन्नाथ पहाड़िया के साथ ही मुख्यमंत्रियों में डॉ० जगन्नाथ मिश्रा और लालू प्रसाद यादव हिजला मेला का उद्घाटन समापन कर चुके हैं पर मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के चारा घोटाले में फंसने के बाद जब से उनकी सत्ता गई तब से कोई मुख्यमंत्री या बड़ा नेता हिजला मेला का उद्घाटन करने नहीं आए। यह भ्रांति फैल गई थी कि हिजला मेला का उद्घाटन करना लालू जी के लिए शुभ नहीं रहा। इस घटना के बाद छोटे-बड़े दूसरे नेता भी अपशकुन के डर से हिजला मेला का उद्घाटन करने से कतराने लगे। नेताओं के कन्नी काटने के बाद अधिकारी ही हिजला मेला का उद्घाटन कर ने लगे थे। संयोग से हिजला मेला का उद्घाटन करने वाले कुछ अधिकारियों का उसी साल ट्रांसफर के बाद अधिकारी भी इस मेले का उद्घाटन करने से डरने लगे। इसलिए मेला का उद्घाटन हिजला गांव के परम्परागत ग्राम प्रधान से कराने की एक नई परम्परा शुरू की गई। कई वर्षों से जनजातीय हिजला मेला का उद्घाटन करने वाले मांझी बाबा सुनीलाल हांसदा ही इस वर्ष भी हिजला मेला के शुभारंभ का फीता काटेंगे और उद्घाटन के कई अन्य रस्मों को पूरा करेंगे।

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Editor - बेनामी

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