रेवाड़ी तहसील में स्टांप वेंडर व सर्विस प्रोवाइडरों की कमीशनखोरी इन दिनों लोगों पर भारी पड़ रही है। ट्रेजरी विभाग से इन्हें तीन फीसदी तक कमीशन दिया जाता है, फिर भी स्टांप खरीदने वालों से 30 से 40 प्रतिशत तक वसूल रहा है। इस पर भी वेंडरों के नखरे अलग से सहने पड़ते हैं। स्थिति यह है कि तहसील में 10 रुपये की टिकट 30 से 40 रुपये में बिक रही हैं, पहले प्रोवाइडरों द्वारा स्टांप देने से मना किया जाता है। लेकिन जब उन्हें मोटा कमीशन दिया जाता है तो हितग्राहियों को अतिरिक्त रुपए लेकर स्टांप दिया जाता है। ऐसा लगता हैं कि पूरा खेल अधिकारियों की शह पर चल रहा है। जिसकी शिकायत अब उच्च अधिकारियों से की जाएंगी। अब उच्च अधिकारी ही कमीशनखोरी की इस प्रक्रिया पर किसी तरह से रोक लगा सकतें है।
Rewari News :: तहसील कार्यालय में स्टांप वेंडर व सर्विस प्रोवाइडरों की कमीशनखोरी लोगों पर पड़ रही भारी
नियम के विपरीत वसूल रहे कमीशन: स्टांप या ई-स्टांप पर हितग्राहियों से किसी प्रकार का कमीशन वसूल करने का प्रावधान नहीं है। सर्विस वेंडरों को स्टांप बेचने के लिए ट्रेजरी विभाग से दो से तीन फीसदी कमीशन दिया जाता है। लेकिन जब इतने कमीशन खोरों का पेट नही भरता , तब लोगों को स्टांप बेचकर 30 से 40 प्रतिशत तक अधिक कमीशन वसूल लिया जाता है। ऐसा नहीं है कि इसकी खबर अधिकारियों को नहीं है। लेकिन कुछ विभागीय अधिकारियों की मिली भगत से यह कारनामा खुलेआम संचालित हो रहा है। जिस पर आज तक किसी जिम्मेदार अधिकारी ने कार्रवाई करने का विचार तक नहीं किया है। इसके कारण तहसील में रजिस्ट्री या नोटरी के लिए आने वाले लोग हर दिन अपने आप को ठगा सा महसूस करते हैं।
एक जागरूक नागरिक अभिषेक झांब ने बताया कि अगर 100 रुपये का स्टाम्प इन एजेंटों से माँगा जाएं तो यह साफ़ मना कर देते हैं और अगर प्रार्थी द्वारा ज्यादा ही मिन्नते की जाएं तो 150 से 200 रुपये तक बेचा जाता हैं, सरकारी दफ़्तर में कमीशन का यह खेल पूरे जोर शोर से चल रहा है। जबकि विभाग द्वारा ऐसा कोई नियम नहीं है कि स्टांप पर लोगों से कमीशन वसूला जाए। फिर भी तहसील में टेबल सजाकर बैठने वाले लोग अपनी आदत से बाज नहीं आते हैं और अधिक लाभ कमाने के चक्कर में ट्रेजरी से तय कमीशन के बाद लोगों से कई गुना तक अधिक कमीशन वसूल लेते हैं।
स्टांप व रजिस्ट्री के नाम पर सर्विस प्रोवाइडरों द्वारा चल रही मनमानी के संबंध में पूर्व में शिकायत दी जाती रही हैं लेकिन केवल आश्वासन दिया है। पर किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। छोटा स्टांप खरीदने वालों को भी मोटा कमीशन भरना पड़ता है। वहीं स्थिति यह है कि छोटे स्टांप पहले तो वेंडरों द्वारा देने से मना कर दिए जाते हैं। लेकिन प्राइवेट वकील या तहसील कर्मचारियों की सिफारिश पर कमीशन लेकर दे दिए जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता हैं इसमें पूरा अमला कमीशन प्राप्त करता है। अगर ऐसा नही हैं तो अधिकारियों को ऐसे धोखेबाज़ों और जालसाजों की पहचान कर इनके ख़िलाफ़ कानूनी कार्यवाही करनी चाहियें और इनके लाइसेंस भी तुरंत प्रभाव से रदद् करने चाहियें
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