ग्राम समाचार, साहिबगंज(झारखंड)। झारखण्ड विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की चुनावी प्रक्रिया 20 नवंबर को समाप्त हो गई, और इसके परिणाम 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। बोरियो विधानसभा क्षेत्र के मंडरो प्रखंड अंतर्गत बच्चा पंचायत के आमझोर दक्षिण बूथ संख्या 04 में सैकड़ों ग्रामीणों ने ढोल बाजा के साथ मतदान का बहिष्कार किया। इस बूथ पर मात्र 39 वोट ही पड़े, जबकि यहां के लगभग 600 मतदाता थे।
बूथ संख्या 04 के अंतर्गत बच्चा, आमझोर दक्षिण, आमडा, छतनी, झिरूकभीटा, चौकाला, कटिंगिमाको, सोनझोर जैसे गांव आते हैं। इन सभी गांवों को मिलाकर लगभग 600 मतदाता हैं, लेकिन वोट बहिष्कार के बाद केवल 39 वोट ही पड़े। लोकतंत्र के इस महापर्व में मतदान के दिन ही मतदाताओं का वोट बहिष्कार करना दुर्लभ दृश्य था।
आमझोर दक्षिण के ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव में आने के लिए कोई रोड की व्यवस्था नहीं है और ना ही गांव में स्वास्थ्य उपकेंद्र है। इस समस्या को लेकर उन्होंने पिछले दस-पंद्रह सालों से विधायक, सांसद और अधिकारियों से मौखिक और लिखित रूप से शिकायत की है, लेकिन अब तक केवल आश्वासन ही मिले हैं। गांव वालों का कहना है कि उन्हें कहीं भी जाने के लिए कम से कम दो किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है, जिससे उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
ग्रामीणों का कहना है कि विधायक और सांसद सिर्फ वोट के समय आकर बड़े-बड़े वादे करते हैं और बाद में कभी नहीं आते। इसलिए इस बार उन्होंने निर्णय लिया है कि जब तक उन्हें रोड और अस्पताल की सुविधा नहीं मिलेगी, तब तक वे वोट नहीं करेंगे। इस मामले की जानकारी मिलते ही मंडरो बीडीओ मेघनाथ उरांव ने कई घंटे तक ग्रामीणों को समझाने की कोशिश की, लेकिन ग्रामीणों ने उनकी बात मानने से इनकार कर दिया। बीडीओ उरांव ने बताया कि काफी प्रयासों के बाद ही बूथ संख्या 04 पर 39 वोट डाले जा सके।
यह घटना जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की लापरवाही को उजागर करती है। आजादी के सतहत्तर साल बाद भी रोड और अस्पताल की सुविधा न होना बेहद दुखद है। मंडरो प्रखंड राजमहल लोकसभा क्षेत्र में आता है। राजमहल लोकसभा से लगातार सांसद विजय हांसदा और बोरियो विधानसभा से लगातार विधायक लोबिन हेंम्ब्रम दोनों ही झामुमो पार्टी से हैं। लोबिन हेंम्ब्रम झामुमो पार्टी में विवाद होने से इस बार विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी से उनकी सदस्यता समाप्त कर दिया गया था। झामुमो छोड़कर अब बीजेपी से चुनाव लड़ रहे है लेकिन इन गांवों तक जनकल्याण योजना पहुंचाने में सांसद हो या विधायक दोनों असमर्थ रहे हैं।
ग्रामीणों की यह समस्या केवल आमझोर दक्षिण तक सीमित नहीं है। कई गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं और जनता अपने अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठा पा रही है। जब तक मतदाता जागरूक और शिक्षित नहीं होंगे, नेता उन्हें लुभाने में सफल रहेंगे। ग्रामीणों का यह बहिष्कार उनके जागरूक होने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसके लिए लंबा संघर्ष अभी बाकी है।
यहां पर एक और सवाल उठता है कि विधायक, सांसद और अधिकारियों की लापरवाही ने ग्रामीणों को इस कदर हताश कर दिया है कि उन्होंने लोकतांत्रिक प्रक्रिया से खुद को अलग कर लिया। यदि हम बात करें तो राजमहल लोकसभा से विजय हांसदा और बोरियो विधानसभा से पुर्व में लोबिन हेंम्ब्रम दोनों ही झामुमो पार्टी के प्रतिनिधि हैं, वही बोरिया विधानसभा से पूर्व बीजेपी विधायक ताला मरांडी भी दो दशक विधायक रहे हैं। लेकिन जनप्रतिनिधि की लापरवाही ने इन गांवों तक जनकल्याण योजनाओं को पहुंचाने में नाकामी का सामना किया है।
यह मुद्दा केवल एक क्षेत्र विशेष का नहीं है। पूरे राज्य में कई ऐसे गांव हैं जिनमें बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। ये समस्याएं केवल चुनावों के दौरान उजागर होती हैं, लेकिन कोई समाधान नहीं मिलता। यदि जनप्रतिनिधियों को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता और जनता जागरूक होती तो शायद यह स्थिति न होती। आजादी के इतने सालों बाद भी इस तरह की समस्याएं हमें झकझोरती हैं और यह दर्शाती हैं कि लोकतंत्र की वास्तविक ताकत जनता की जागरूकता और अधिकारों की प्राप्ति में है।
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