Editorial: स्कूली शिक्षकों की निजी ट्यूशन का भारत में शिक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव

 - राजीव कुमार, प्रधान संपादक, ग्राम समाचार.

भारत में स्कूली शिक्षा  एक महत्वपूर्ण संकट का सामना कर रही है, और इसका एक मुख्य कारण यह है कि देश में  स्कूल शिक्षकों द्वारा उसी स्कूली के छात्रों को निजी ट्यूशन देने की व्यापक प्रचलन हो गया है जहाँ वे कार्यरत हैं। यह प्रचलन   न केवल अनैतिक है, बल्कि समग्र रूप से बच्चों के शिक्षा और मनोदशा  पर भी हानिकारक प्रभाव डालती है। स्कूल के कई  शिक्षकों द्वारा छात्रों को प्राइवेट ट्यूशन लेने के लिए मजबूर करना और मना करने पर आंतरिक मूल्यांकन (इंटरनल एसेसमेंट)  में अच्छे अंक न देने की धमकी देना आम बात हो गई है।

यह प्रचलन  शैक्षिणिक अखंडता और व्यावसायिकता के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन है। विद्यालय के  शिक्षकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करें, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए उनका शोषण करें। छात्रों को ट्यूशन लेने के लिए मजबूर करके, शिक्षक आलोचनात्मक सोच और स्व-शिक्षण को प्रोत्साहित करने के बजाय दूसरे पर  निर्भरता और  ज्ञान की अपंगता जैसी गलत संस्कृति  बना रहे हैं।

इसके अलावा, यह निजी ट्यूशन का प्रचलन  छात्रों के अधिकारों का भी उल्लंघन है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21-ए 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है। हालाँकि, जब शिक्षक छात्रों को ट्यूशन लेने के लिए मजबूर करते हैं, तो वे अनिवार्य रूप से उन्हें इस मौलिक अधिकार से वंचित कर रहे होते हैं। इसके अलावा, शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE), 2009 विशेष रूप से शिक्षा के व्यावसायीकरण पर रोक लगाता है, जिसमें शिक्षकों द्वारा निजी ट्यूशन लेने की प्रथा भी शामिल है।

इस प्रथा के परिणाम दूरगामी हैं। जिन छात्रों को अपने शिक्षकों की ट्यूशन लेने के लिए मजबूर किया जाता है, वे अक्सर दबाव और तनाव महसूस करते हैं, जिससे सीखने में प्रेरणा और रुचि की कमी होती है। इसका परिणाम खराब शैक्षणिक प्रदर्शन और आत्म-सम्मान में कमी हो सकती है। दूसरी ओर, जो छात्र इन ट्यूशन का खर्च नहीं उठा सकते, वे नुकसान में हैं, क्योंकि उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच से वंचित रखा जाता है।

भारत सरकार ने इस मुद्दे को हल करने के लिए कई उपाय किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षकों द्वारा निजी ट्यूशन के खिलाफ कई फैसले जारी किए हैं, जिसमें 2012 का एक फैसला भी शामिल है, जो स्कूल के शिक्षकों को   निजी ट्यूशन लेने से रोकता है। इसके अतिरिक्त, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने भी शिक्षकों द्वारा निजी ट्यूशन के खिलाफ दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद, यह प्रथा निरंतर जारी है। अब समय आ गया है कि सरकार इस मुद्दे को हल करने के लिए ठोस कदम उठाए। इसमें शिक्षकों द्वारा निजी ट्यूशन पर रोक लगाने वाले नियमों और कानूनों को मजबूत करना, साथ ही शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना शामिल है।

निष्कर्ष के तौर पर, स्कूल शिक्षकों द्वारा उसी स्कूल के छात्रों को निजी ट्यूशन देने की प्रथा, जहाँ वे कार्यरत हैं, न केवल अनैतिक है, बल्कि भारत में शिक्षा प्रणाली पर भी इसका हानिकारक प्रभाव पड़ता है। यह आवश्यक है कि हम इस मुद्दे को तत्काल हल करें और सुनिश्चित करें कि हमारी शिक्षा प्रणाली व्यक्तिगत लाभ से ज़्यादा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को प्राथमिकता दे।

संदर्भ:

1. शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE), 2009.

2. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (2012).

3. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) के दिशा-निर्देश.

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Editor - न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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