Bounsi News: मंदार क्षेत्र में भगवान मधुसूदन मंदिर में फगदोल में मनाई जाती है पारंपरिक तरीके की होली

ब्यूरो रिपोर्ट ग्राम समाचार बांका। वैसे तो होली रंगों, मिठाइयों का त्यौहार है। लेकिन हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में इस त्यौहार के रंग-ढंग कुछ बदल जाते हैं और एक नई मिठास लिए होते हैं। यहां कहीं गुलाल से तो कहीं फूलों से तो कहीं पानी से होली खेली जाती है और सबका तरीक़ा अपने आप में रोचक और अनूठा होता है। हर शहर कमोबेश एक जैसे ही होते हैं। वही लोग, वही भागदौड़ भरी जीवनशैली, वह रोज़मर्रा की जद्दोजहद। लेकिन देश के हर हिस्से को कोई बात अनूठी बनाती है, तो वह है उसकी मान्यताएं, उसकी परंपराएं और उसके त्यौहार मनाने का तरीक़ा। भारत की सबसे मशहूर, ब्रज की होली की परंपरा 5,000 वर्ष पुरानी है। नंदगांव, जहां कृष्ण पले-बढ़े और बरसाना, जो कि राधा का गांव था, की होली को ब्रज की होली कहते हैं। इसकी शुरुआत यूं तो वसंत से ही हो जाती है, पर रंग-रंगीले त्यौहार का उल्लास अपने चरम को तब छूना आरंभ करता है, जब ब्रज के रसिया, गोपियों को होली का न्यौता देते हैं,‘मतवारौ फागुन जाए, तनिक रसिया से बतरा लीजौ...’ मथुरा शहर से क़रीब 42 किमी दूर बसे राधा जी के गांव बरसाना में शुक्ल पक्ष की नवमी को एक अनोखी होली खेली जाती है जिसका नाम है लट्ठमार होली। इस परंपरा में जो रस है, उसे स्थानीय गोस्वामी गण, उनके परिवार, संतगण व ब्रजवासी प्रस्तुत करते रहे हैं। नंदगांव के गोप लाड़ली जी यानी राधा के मंदिर पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं और बरसाने की गोपियां उनपर लट्ठों की वर्षा करके उन्हें ऐसा करने से रोकती हैं। न कोई हार-जीत, न कोई खीझ... बस आनंद ही आनंद, माधुर्य ही माधुर्य... राधा बनी बरसाने की हुरियारिनों के सामने नंदगांव के गोपों को किसी भी तरह के विरोध करने की इजाज़त नहीं होती है। उन्हें सिर्फ़ अपनी ढाल से हुरियारिनों के लट्ठों की चोट को बचाना होता है और गुलाल छिड़ककर चकमा देना होता है। पकड़े जाने पर न केवल उनकी जमकर पिटाई होती है, बल्कि महिलाओं जैसा श्रृंगार करके उन्हें बीच भवन में नचाया भी जाता है। इस दौरान चारों ओर से अनवरत ‘होरी’ गायन के स्वरों और प्राकृतिक रंग-गुलाल की बारिश होती रहती है। अगले दिन बरसाने के पुरुष नंदगांव जाकर वहां की गोपियों पर रंग डालने की कोशिश करते हैं। होली का यह उत्सव सात दिनों तक चलता है। वैसे तो दक्षिण भारत में होली उतना बड़ा त्यौहार नहीं है, पर वहां भी होली मनाई जाती है। दक्षिण भारतीय राज्यों में होली को कामदेव की कहानी से 





जोड़कर देखा जाता है। कामदेव और उनकी पत्नी रति की दुखद कहानी पर आधारित कई लोकगीत हैं। तमिल नाडु में होली को कामदहनम कहा जाता है। केरल के मलयाली भाषी तो होली नहीं मनाते, पर वहां रह रहे तमिल भाषी लोग होली खेलते हैं। वे होली को मंगलकुली कहते हैं। मंगल यानी हल्दी और कुली का अर्थ है स्नान। वहीं हैदराबाद में दो दिनों तक होली मनाई जाती है। बिहार की राजधानी पटना भोजपुरी होली का केंद्र है। भोजपुरी भाषियों की होली बड़ी निराली होती है। होली के तमाम गाने होते हैं। होली के मौक़े पर गाए जानेवाले गानों को फगुआ कहते हैं और होली को भी फगुआ नाम से जाना जाता है। यहां रंगों से ही नहीं, कीचड़ से भी होली खेली जाती है। छककर भांग पीते हैं, भोजपुरी लोकगीतों और फ़िल्मी गीतों पर झूमते हैं। यहां भी कपड़ा फाड़ होली खेलने का चलन है। ठीक उसी प्रकार मंदार क्षेत्र में भी एक अलग तरह से ही होली मनाई जाती है। मंदार क्षेत्र में भगवान मधुसूदन की होली काफ़ी निराली होती है। परंपरागत तौर पर भगवान मधुसूदन क्षेत्र में सदियों से होली मनाई जाती रही है यही वजह है कि देश के विभिन्न प्रांतों से "होली का उत्सव मनाने भगवान के भक्त मंदार मधुसूदन क्षेत्र में पहुंचते हैं। मधुसूदन नगरी में इस वर्ष होली को उत्सव धूमधाम से मनाने की तैयारी की जा रही है। इस वर्ष भगवान मधुसूदन के आस्थावान श्रद्धालुओं में काफी उत्साह है दो दिवसीय होली को लेकर मंदिर में आयोजन समिति के द्वारा तैयारी की जा रही है। वहीं बसंत पंचमी से ही भगवान मधुसूदन की होली आरंभ हो जाती है। होली के एक दिन पूर्व धुरखेल होली वंदन के रूप में बौंसी के नगरवासी शाम को होलिका जलाने आगरा नदी तट पर जमा होते हैं। भगवान के शालीग्राम रूप को पंडा पुजारियों द्वारा ले जाकर इस होलिका दहन के अवसर पर भजन गाते हुए नदी के तट पर जाते हैं होलिका दहन के बाद पुनः भजन गाते हुए वापस मंदिर तक आते हैं। अगले दिन प्रातः मधुसूदन भगवान का अभिषेक पंचामृत महास्नान, श्रृंगार पूजा के साथ संध्याकालीन फगदोल मंदिर के झूले पर भगवान मधुसूदन को विराजमान कर लोगों द्वारा पवित्र गुलाल चढ़ाया जा सकता है। इस मौके पर मधुसूदन भगवान को मंदिर से बाहर स्थित फगदोल तक ले जाने क्रम में पंजवारा ड्योढी से आए भजन मंडली के द्वारा होली के गीत गाए जाते हैं। साथ ही साथ तमाम श्रद्धालु होली के रंग में डूब जाते हैं। मंदार क्षेत्र में होली कई तरीके से मनाई जाती है। कभी ब्रज के तर्ज पर होली मनाई जाती है तो कभी राजस्थान स्टाइल में पगड़ी वाली होली मनाई जाती है। इस वर्ष होली राजस्थानी परिधान के साथ पगड़ी वाली होली मनाई जाएगी। वहीं दूसरी ओर ऐतिहासिक मंदार क्षेत्र में आदिवासी जनजाति संताल समुदाय के लोगों का बहा पर्व होली की धूम मची है। विदित हो कि देश अमृत काल उत्सव मना रहा है। वहीं संताल आदिवासियों की हर साल अमृत काल की होली मनाने की परंपरा सदियों से चली आई है। आदिवासियों के सांस्कृतिक धार्मिक अवधारणाओं के प्राचीन काल के ऐतिहासिक किवदंती उल्लेख मिलता है। विश्व में आई जलजला से विनष्ट हुए प्राणियों में जाहेर ऐरा देवी की अमृत वर्षा से आदिवासियों को नवजीवन की प्राप्ति हुई है। तभी से पूजा-अर्चना के साथ संताल आदिवासियों के बहापर्व में पानी की होली खेलने की परंपरा है। बात बहुत पुरानी है जंगल में निवास करने वाले आदिवासी जनजातियों के सीमवीर, मानवीर, गाड़वीर, बुरु पर्वत आदि सात विस्तृत वन क्षेत्र के अंचलों में अग्नि वर्षा से हाहाकार मचने से मानव, पशु-पक्षी सभी विनष्ट होने लगे। जो कोई कंदराओं में छुपे रहे वही गिनती के कुछेक बच गए। इस तरह प्राणियों के विलुप्त होने की यदकिंचित संभावनाओं पर जनजीवन की मंगल कामनाओं को लेकर जाहेर ऐरा देवी की पूजा-अर्चना की गई। देवी ने प्रसन्न होकर अमृत वर्षा की और विलुप्त हो रहे प्राणियों में नवजीवन का संचार हुआ। आदिवासी मान्यताओं के अनुसार होली के चार रोज पूर्व फाल्गुन शुक्ल एकादशी से दो-तीन दिनों तक बहापर्व मनाते है। पुजारी महिलाओं को आंचल में साल सखुआ फूल देकर आशीर्वाद देते ही गांव के आदिवासी पुरुष-महिलाओं ने हर्षोल्लास से नाचते-गाते खूब खेली पानी की होली।

कुमार चंदन,ब्यूरो चीफ,बांका।

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Editor - कुमार चंदन,ब्यूरो चीफ,बाँका,(बिहार)

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