Rewari News : करवा चौथ के व्रत का महत्व पर आर्टिकल अनिता देवी की कलम से...

इतिहास में कभी कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं हैं, उनके उपलक्ष्य में ही आज त्यौहार मनाये जाते हैं। हम क्रिसमस मनाते हैं क्योंकि उस दिन कुछ महत्वपूर्ण बात हुयी थी। लोग ईद मनाते हैं क्योंकि भूतकाल में उसी दिन कुछ अच्छा हुआ था। इस प्रकार हम उत्सव मनाते हैं।



हर त्योहार के पीछे कोई कहानी है या फिर उसका कोई ज्योतिषी महत्व है। जैसे करवा चौथ पूर्णिमा का चौथा दिन होता है जिसमें महिलाएं पूरा दिन अपने पति के कल्याण के लिए व्रत करतीं हैं और फिर उसके बाद उत्सव मनातीं हैं व अच्छा भोजन करतीं हैं। यह प्रथा है और इसके पीछे कुछ कहानियां हैं।


करवा चौथ व्रत कथा | 


करवा चौथ की भी एक कहानी है। एक बार एक राजा था जिसका नाम था सत्यवान और उसकी पत्नी थी सावित्री। राजा ने युद्ध में सब कुछ खो दिया और अपने प्राण भी गँवा दिए। जब मृत्यु उसे लेने आयी, तब उसकी पत्नी ने प्रार्थना करी और उसका संकल्प इतना शक्तिशाली था कि उसने अपने पति को पुनर्जीवित कर दिया। जो आत्मा शरीर छोड़कर चली गयी थी, वह वापस शरीर में आ गयी। तो इसी को करवा चौथ कहते हैं। ऐसी ही और बहुत सी प्राचीन कथाएँ हैं। उसने कहा कि आज सूर्य उदय नहीं होगा और वास्तव में सूर्य बहुत दिनों तक उगा ही नहीं। इसी तरह की कुछ कहानियाँ हैं। करवा चौथ ऐसा ही त्यौहार है।


उत्सव मनाईये ! अब उत्सव मनाने का कोई भी बहाना हो! उपवास करिए और फिर अच्छा भोजन करके उत्सव मनाईये। यही तो जीवन है!


जब आप व्रत रखते हैं, तब आपका पूरा शरीर शुद्ध हो जाता है। जब शरीर में से विषैले पदार्थ निकल जाते हैं, तब मन तीक्ष्ण होता है। ऐसी अवस्था में आप जो भी इच्छा करते हैं या जिस भी लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं, वह पूरा होता है। यह श्रद्धा है, नियम भी है और इसका वैज्ञानिक आधार भी है। लेकिन व्रत के साथ-साथ आपको मन की संकल्प शक्ति को भी बढ़ाना होगा। करवा चौथ के पूरे दिन, आपके मन में बस एक ही इच्छा रहती है कि आपके पति या पत्नी का कल्याण हो। पुराने दिनों में, लोग केवल इसी एक इच्छा के साथ व्रत करते थे। ये और कुछ नहीं केवल हमारे मन की शक्ति है। लेकिन यदि आपका मन कहीं और है और आप केवल भोजन नहीं कर रहे हैं, तब उसका उतना फायदा नहीं होगा। हाँ, शरीर को आराम ज़रूर मिल जाएगा। हमारा लीवर 24x7 काम करता है। व्रत करने से उसे थोड़ा आराम तो मिल ही जाता है।

इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है। चंद्रमा के साथ- साथ भगवान शिव, पार्वती जी, श्री गणेश और कार्तिकेय की पूजा भी की जाती है। ... यह व्रत कार्तिक माह की चतुर्थी को मनाया जाता है, इसलिए इसे करवा चौथ कहते हैं।



यह व्रत कार्तिक माह की चतुर्थी को मनाया जाता है, इसलिए इसे करवा चौथ कहते हैं। य़ू तो करवाचौथ की बहुत सी पौराणिक कथा है पर इस व्रत की शुरुआत सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण वापस लाकर की थी। तभी से सभी सुहागिनें अन्न जल त्यागकर अपने पति के लम्बी उम्र के लिए इस व्रत को श्रद्धा के साथ करती हैं।



व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार जब सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए यमराज आए तो पतिव्रता सावित्री ने उनसे अपने पति सत्यवान के प्राणों की भीख मांगी और अपने सुहाग को न ले जाने के लिए निवेदन किया। यमराज के न मानने पर सावित्री ने अन्न-जल का त्याग दिया। वो अपने पति के शरीर के पास विलाप करने लगीं। पतिव्रता स्त्री के इस विलाप से यमराज विचलित हो गए, उन्होंने सावित्री से कहा कि अपने पति सत्यवान के जीवन के अतिरिक्त कोई और वर मांग लो।

सावित्री ने यमराज से कहा कि आप मुझे कई संतानों की मां बनने का वर दें, जिसे यमराज ने हां कह दिया। पतिव्रता स्त्री होने के नाते सत्यवान के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचना भी सावित्री के लिए संभव नहीं था। अंत में अपने वचन में बंधने के कारण एक पतिव्रता स्त्री के सुहाग को यमराज लेकर नहीं जा सके और सत्यवान के जीवन को सावित्री को सौंप दिया। कहा जाता है कि तब से स्त्रियां अन्न-जल का त्यागकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए करवाचौथ का व्रत रखती हैं।



करवाचौथ व्रत कथा

यह व्रत कार्तिक माह की चतुर्थी को मनाया जाता है, इसलिए इसे करवा चौथ कहते हैं। व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक द्विज नामक ब्राह्मण के सात बेटे व वीरावती नाम की एक कन्या थी। वीरावती ने पहली बार मायके में करवा चौथ का व्रत रखा। निर्जला व्रत होने के कारण वीरावती भूख के मारे परेशान हो रही थी तो उसके भाइयों से रहा न गया। उन्होंने नगर के बाहर वट के वृक्ष पर एक लालटेन जला दी व अपनी बहन को चंदा मामा को अ‌र्घ्य देने के लिए कहा।


सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए हर साल करवा चौथ का व्रत रखती हैं। हालांकि आजकल कुवांरी लड़कियां भी अपने ब्वॉयफ्रेंड, मंगेतर या फ्यूचर हसबैंड के लिए व्रत रखती हैं लेकिन फिर भी उनके मन में यह सवाल होता है कि शादी से पहले यह व्रत रखना सही है? वहीं करवा चौथ से जुड़े और भी कई ऐसे सवाल है जो महिलाओं के मन चलते रहते हैं, जैसे छलनी से ही चांद क्यों देखा जाता है? आज अपने इस पैकेज में आपको करवा चौथ से जुड़ी कुछ ऐसी ही बातें बताएंगे। चलिए जानते हैं करवा चौथ से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें।


 

क्या ब्वॉयफ्रेंड के लिए रख सकते हैं व्रत?

ज्योतिषों की मानें तो कुवांरी लड़कियां भी यह व्रत रख सकती हैं। अगर आप किसी भी रिश्ते में नहीं हैं तब भी आप इस व्रत को रख सकती हैं। इससे किसी भी तरह का नुकसान नहीं होता लेकिन पूजा पूरे विधी-विधान से करें।


नियम होते हैं अलग

करवाचौथ का व्रत विवाहित और अविवाहित दोनों के लिए होता जरूर है लेकिन इसके नियम अलग-अलग होते हैं। अगर आप अपने ब्वॉयफ्रेंड या मंगेतर के लिए व्रत नहीं रख रही हैं तो निर्जला व्रत ना करके निराहार व्रत रखें। यही नहीं व्रत के बाद सिर्फ चांद की पूजा ना करें। शिव और पार्वती की अराधना करने से भी आपके मनचाहे वर की इच्छा भी पूरी होती है। अगर आप किसी रिश्ते में नहीं है तो पार्वती माता से अपने होने वाले जीवनसाथी की लंबी उम्र की कामना जरूर करें।


छलनी से चांद क्यों देखते हैं?

करवा चौथ की कथा के मुताबिक, सात भाइयों की एक बहन वीरावती को उसके भाइयों ने स्नेहवंश भोजन करवाने के लिए छल से चांद की बजाए छलनी की ओट में दीपक दिखाकर भोजन करवा दिया था, जिससे उसका व्रत भंग हो गया। इसके बाद उसने पूरे साल चतुर्थी का व्रत किया। दोबारा करवा चौथ आने पर उसने विधिपूर्वक व्रत किया और उसे सौभाग्य की प्राप्ति हुई। इसके पीछे एक और रहस्य है कि कोई छल से उनका व्रत भंग न कर दें इसलिए छलनी के जरिए बहुत बारीकी से चंद्रमा के देखकर व्रत खोला जाता है। इसी बात को दोहराते हुए महिलाएं छलनी से चांद देखती हैं।


किसने रखा था सबसे पहले व्रत?

कथाओं के अनुसार, करवा चौथ का व्रत सबसे पहले माता पार्वती जी ने भगवान शिव के लिए रखा था। इसी व्रत से उन्होंने अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था। यही कारण है कि इस व्रत के दौरान माता पार्वती जी की पूजा की जाती है। माता पार्वती के बाद महाभारत में पांडवो की विजय के लिए द्रोपद्री ने यह व्रत रखा था।


देवाताओं की विजय के लिए माताओं ने रखा था व्रत

ऐसा भी माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों के युद्ध में देवता हारने लगे थे। तभी भगवान ब्रह्मा जी ने उनकी पत्नियों से व्रत रखकर उनकी विजय के लिए प्रार्थना करने को कहा। इसी वजह से सभी देवताओं को जीत प्राप्त भी हुई।


इसलिए करवा के साथ गणेश जी की कथा

ऐसा कहा जाता है कि करवा चौथ की कथा कभी भी अकेले नहीं सुननी चाहिए इसलिए इसके साथ गणेश भगवान की कथा भी सुनाई जाती है। इससे महिलाओं को एक पत्नी और एक मां की शक्ति मिलती है।


इसलिए करवा का करते हैं उपयोग


करवा चौथ के पूजन में करवा का उपयोग किया जता है। मिट्टी का करवा पंच तत्व का प्रतीक है। मिट्टी को पानी में गला कर बनाते हैं जो भूमि तत्व और जल तत्व का प्रतीक है। उसे बनाकर धूप और हवा में सुखाया जाता है जो आकाश तत्व और वायु तत्व के प्रतीक हैं। अंत में आग में तपाकर बनाया जाता है। जो अग्नि तत्व का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में पानी को ही परब्रम्ह माना गया है, इसलिए करवे से पानी पिलाकर पति पत्नी अपने रिश्ते का पंच तत्वों का साक्षी बनाते हुए सुखी दांपत्य जीवन की कल्पना करते हैं।


प्रयागराज : कार्तिक कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी अर्थात करक चतुर्थी (करवाचौथ) सुहागिनों को सुख-समृद्धि प्रदान करती है। यह तो इसका एक पक्ष है। अब आइए इसके दूसरे पक्ष को जानते हैं। करवाचौथ के व्रत का वैज्ञानिक दृष्टि से भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि धार्मिक पक्ष।

सुहागिन महिलाएं शनिवार को दिनभर निर्जला व्रत रखकर शाम को सोलह श्रृंगार करके मां गौरी, भगवान शंकर, गणेश व कार्तिकेय को पुष्प, अक्षत, धूप, दीप आदि अर्पित करके करवाचौथ कथा का पाठ करेंगी। इसके बाद चंद्रमा को अघ्र्य देकर पति को चलनी से देखने के बाद व्रत का पारण कर सकेंगी। ज्योतिर्विद आशुतोष वाष्र्णेय बताते हैं कि करवाचौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं पति की चिरायु के लिए रखती हैं। कुंवारी युवतियां भी इस व्रत को रखकर पूजा पाठ कर सकती हैं।


मिलती है निरोगी काया :

विश्व पुरोहित परिषद के अध्यक्ष ज्योतिर्विद प्रो. विपिन पांडेय बताते हैं कि करवाचौथ व्रत में चंद्रमा की पूजा धार्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। चंद्रमा मन का कारक एवं औषधियों को संरक्षित करता है। कार्तिक मास में औषधियों के गुण विकसित अवस्था में होते है। यह गुण उन्हें चंद्रमा से ही प्राप्त होता है। यह व्यक्ति के स्वास्थ्य और निरोगी काया को बनाता है। करवाचौथ के व्रत में चंद्रमा को अघ्र्य देने का विधान इसी कारण है। इससे मानव को आयु, सौभाग्य और निरोगी काया की प्राप्ति होती है।


 करवाचौथ व्रत रखने व पूजन की विधि :

- व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के बाद 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये' को मन में बोलकर करवाचौथ का व्रत आरंभ करें।

- दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावल के घोल से करवा चित्रित करें, इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।

- आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ एवं अन्य पकवान बनाएं।

- पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।

- गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं, बिंदी आदि सुहाग सामग्री से उनका श्रृंगार करें।

- जल से भरा हुआ लोटा रखें।

- वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें, उसके ऊपर दक्षिणा रखें।

- रोली से करवा पर स्वास्तिक बनाएं।

- गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें।

- करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवाचौथ की कथा कहें या सुनें।

- कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सास के पांव छूकर आशीर्वाद लेकर करवा उन्हें दें।

- रात में चंद्रमा निकलने के बाद चलनी की ओट से उसे देखें, फिर उसी से पति को देखें। इसके बाद चंद्रमा को अघ्र्य दें।

- इसके बाद पति से आशीर्वाद लेकर उन्हें भोजन कराकर स्वयं करें।



करवाचौथ पर महिलाएं न करें ये काम : 

करवा चौथ पर महिलाएं जल्दी उठती हैं और ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करती हैं, उसके बाद, वे करवा माता, भगवान शिव, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय से प्रार्थना करते हैं और संकल्प (प्रतिज्ञा) लेती हैं कि व्रत का पालन अत्यंत भक्ति और ईमानदारी से करेंगी। करवा चौथ के दिन देर तक न सोएं क्योंकि व्रत की शुरुआत सूर्योदय के साथ ही हो जाती है। करवा चौथ के दिन यह व्रत करते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए अन्यथा इसके अशुभ फल भुगतने पड़ सकते हैं। ...... अनिता देवी 

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Editor - राजेश शर्मा : रेवाड़ी (हरि.) - 9813263002

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- राजीव कुमार (Editor-in-Chief)

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