ग्राम समाचार, गोड्डा ब्यूरो रिपोर्ट:- अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष (इफार्ड) ने वित्त पोषित जेटीडीएस (झारखंड ट्राइबल डेवलपमेंट सोसाइटी-झारखंड सरकार) के सहयोगी संस्था ग्रामीण विकास ट्रस्ट के माध्यम से सुंदरपहाड़ी के बाँसजोरी पंचायत के बाँसजोरी गांव में श्री विधि से धान की खेती पर किसानों को प्रशिक्षण दिया गया। ग्रामीण विकास ट्रस्ट के कृषि विशेषज्ञ सुधीर कुमार वर्मा के द्वारा श्री विधि की मुख्य विशेषताएं बताई गई।
1. 20 से 21दिन के या दो पत्तों के पौधों को लगाया जाता है।
2. पौधों की रोपाई 25 सेंटीमीटर (10 इंच) की दूरी पर लाईन में की जाती हैं।
3. एक बार में एक पौधे को लगाया जाता है। श्री विधि में एकड़ खेत में धान रोपने के लिए सिर्फ 2 किलो बीज की आवश्यकता होती है,क्योंकि एक किलोग्राम धान में लगभग चालीस हजार दाने होते हैं, इस तरह 2 किग्रा. बीज में अस्सी हजार दाने होते हैं। जबकि एक एकड़ खेत में दस इंच की दूरी पर एक एक पौधा लगाने में लगभग चौंसठ हजार पौधों की आवश्यकता पड़ती है। जिसके लिए 2 किलोग्राम बीज पर्याप्त है। श्री विधि में जो दूसरी सबसे जरूरी बात यह है कि कम से कम दो बार घास या खरपतवार निकालना जरूरी है, क्योंकि ज्यादा दूरी में पौधा लगाने के कारण घास ज्यादा होती है। घास निकालने के लिए एक मशीन प्रयोग में लाई जाती है, जिसे कोनो या अम्बिका बीडर कहते हैं। यह मशीन चलाने में आसान होती है तथा किसान भाई खुद इसे चला सकते हैं। अम्बिका बीडर सस्ता और थोड़ा हल्का है। लाईन से पौधों को इसलिए लगाया जाता है, जिससे उसके बीच अम्बिका बीडर को चलाना आसान होता है। अम्बिका बीडर घास निकालने के अलावा मिट्टी भी पलटती है, जिससे मिट्टी पोला होता है एवं उससे धान के पौधों की जड़ों को हवा मिलती है। श्री विधि में प्रति पौधे में औसतन 40 से 50 कल्ले निकलते हैं, जो अधिकतम 80 तक जा सकते हैं। इस विधि से खेती करने से परम्परागत विधि की तुलना में 2 से 3 गुणा ज्यादा उपज होती है. कार्यक्रम का संचालन ग्रामीण विकास ट्रस्ट के प्रोजेक्ट कोआॅर्डिनेटर मंगलम वर्णवाल ने किया। मौके पर मनोज कुमार, मंगला मलतो, विजय हांसदा आदि प्रगतिशील किसान मौजूद थे।
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