ग्राम समाचार ब्यूरो - अपने क्षेत्र के जनता की दिलो में बसने वाले आनंद मोहन के चाहने वालो ने उनके रिहाई को लेकर एक दिन का उपवास रखा साथ ही सरकार से उन्हें जल्द रिहा करने की मांग की।
उनके चाहने वालो का कहना है कि जिस मामले में उन्होंने सजा काटी उनका कोई हाथ नहीं था फिर भी उसे सजा मिली अब जब उनकी सजा पूरी हो गई तो सरकार उन्हों जल्द रिहा करे।
इसके लिए बुधवार को उनके चाहने वालों ने उपवास रख कर रिहाई की मांग की है।
आइए जानते है आनंद मोहन सिंह बारे में
आनंद मोहन सिंह अपने प्रारम्भिक जीवन काल में चंद्रशेखर सिंह से बहुत अधिक प्रभावित रहे। स्वतंत्रता सेनानी और प्रखर समाज वादी नेता परमेश्वर कुंवर उनके राजनीतिक गुरु थे। आंनद मोहन सिंह ने 1980 में क्रांतिकारी समाजवादी सेना का गठन किया लेकिन लोकसभा चुनाव हार गये। आनंद मोहन 1990 में बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल से विजयी हुए। आनंद मोहन ने 1993 में बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थापना की। उनकी पत्नी लवली आनंद ने 1994 में वैशाली लोकसभा सीट के उपचुनाव में जीती। 1995 में युवा आनंद मोहन में भावी मुख्यमंत्री देख रहा था। 1995 में उनकी बिहार पीपुल्स पार्टी ने नीतीश कुमार की समता पार्टी से बेहतर प्रदर्शन किया था। आनंद मोहन 1996,1998 में दो बार शिवहर से सांसद रहे। आंनद मोहन बिहार पीपुल्स पार्टी के नेता थे अब यह पार्टी अस्तिव में नहीं है। अपने राजनीतिक कैरियर में भूल आनंद मोहन ने स्वयं की,1998 में लालू यादव से समझौता कर के। आनंद मोहन बिहार के गोपालगंज में डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे थे। 17 मई को उनकी सजा पूरी हो गई। लेकिन उनकी रिहाई नहीं हो पाई है। इस बजह से उनके चाहने वालों में निराशा है।
उनके चाहने वालों में से एक क्या कहते है पिंटू दुर्रानी....
पिंटू दुरानी कहते है आनंद भाई साहब एक अच्छे इंसान व साहित्यक बिचार रखने वाले व्यक्ति है। जिसके लेखिनी से मैं बहुत प्रभावित हुं। उनके कई काव्य रचना को मैंने पढ़ा हुं।
कहा कि तिरंगा यात्रा के दौरान आनंद भाई के अच्छे मित्रो में से एक गुड्डू सिंह,से हमारी मुलाकात पटना में हुई थी। फिर गुड्डू सिंह ने हमारी मुलाकात आंनद भाई साहब से करवाई थी। एक ही मुलाकात में भाई साहब के बिचारो से मैं बहुत ही प्रभावित हुआ फिर भाई साहब के एक और मित्र सोनू सिंह हुई। फिर उसके बाद मुलाकातो का सिलसिला चलता रहा। कई वार उनसे मिलने में पूर्णिया सहरसा गया जहां भाई साहब से हमे अपनी लिखी हुई पुस्तक भेंट की बताया की सजा के दौरान जेल में भाई साहब ने कई किताबे लिखी है जिसमे मुख्य - कैद में आजाद कलम, स्वाधीन अभिव्यक्ति, गांधी, कैक्टस के फूल, पर्वत पुरुष दशरथ, गुमनाम नहीं मरूंगा, काल कोठरी से शामिल है।
उन्होंने जिक्र करते हुए कहा कि मैं अप्रैल माह में भाई साहब के घर गया था जहां उनकी मां से मुलाकात हुई मां द्वारा इतना स्नेह व प्यार मिला की मैं भावविभोर हो गया। ऐसा स्नेह व प्यार एक मां से ही मिलती है।
उन्होंने कहा कि मां के हाथों से निवाला खाना एक अलग प्रकार की अनुभूति होती है यहाँ पर मुझे मां के हाथों पान खाने का सौभाग्य मिला जो मैं कभी भूल नही पाउगा।
- ग्राम समाचार, ब्यूरो रिपोर्ट।
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