Rewari News : ब्रह्ममयी शुद्धात्मा में रमण ही ब्रह्मचर्य धर्म है : आचार्य अतिवीर मुनि



रेवाड़ी: परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने दसलक्षण महापर्व के अवसर पर अतिशय क्षेत्र नसियां जी में आयोजित श्री तीस चौबीसी महामण्डल विधान के अवसर पर धर्म के दशम लक्षण "उत्तम ब्रह्मचर्य" की व्याख्या करते हुए कहा कि पर-द्रव्यों से रहित शुद्ध-बुद्ध अपनी आत्मा में जो चर्या अर्थात् लीनता होती है, उसे ब्रह्मचर्य कहते हैं| साधु-संतों के लिए सर्वथा स्त्री संसर्ग का त्याग तथा गृहस्थों के लिए स्वपत्नी संतोष व्रत ही व्यवहार से ब्रह्मचर्य धर्म है| ब्रह्मचर्य धर्म अंगीकार किए बिना परमात्म पद की प्राप्ति संभव नहीं है| ब्रह्म अर्थात निजशुद्धात्मा में चरना, रमना ही ब्रह्मचर्य है | ब्रह्मचर्य के साथ लगा ‘उत्तम’ शब्द भी यही ज्ञान कराता है कि सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान सहित आत्मलीनता ही उत्तम ब्रह्मचर्य है|



आचार्य श्री ने आगे कहा कि दस धर्मों के अंतिम दिन को अनंत चतुर्दशी के नाम से जानते हैं| इसी दिन बारहवें तीर्थंकर भगवन श्री वासुपूज्य जी को मोक्ष हुआ था| दसवें दिन सभी उत्तम ब्रह्मचर्य की आराधना करते हैं| जो पुण्यात्मा स्त्रियों के सुन्दर अंगों को देखकर भी उनमें राग रूप बुरे परिणाम करना छोड़ देता है वही दुर्द्धर ब्रह्मचर्य को धारण करता है| जैसे मंदिर पर कलश चढ़ा होता है, उसी प्रकार दस धर्मों पर चढ़े हुए स्वर्ण कलश का नाम उत्तम ब्रह्मचर्य है| पांच इन्द्रियों के विषयों से विमुख होने का नाम ही उत्तम ब्रह्मचर्य है| अपनी ब्रह्ममयी आत्मा में रमण करना ही ब्रह्मचर्य कहलाता है| यह मनुष्य के ऊपर निर्भर है कि वह अपनी शक्ति को संसार बढ़ाने में लगाए या परमात्मा से मिलन में लगाए| चैतन्य आत्मा का भोग करना ही ब्रह्मचर्य कहलाता है|

ऊर्जा जब बाहर की ओर प्रवाहित होती है तब देह का स्पर्श मांगती है| वहीं ऊर्जा जब भीतर की ओर प्रवाहित होती है तब आत्मा का दर्शन करती है| कहते हैं मनुष्य काम से पैदा होता है परन्तु काम के लिए नहीं अपितु राम के लिए पैदा होता है, आत्म-स्वभाव पाने के लिए पैदा होता है| अतः सभी को चाहिए कि ऊर्जा को काम में नहीं राम में लगाएं| क्योंकि स्वयं में खो जाने का नाम ही ब्रह्मचर्य है| ऊर्जा जब दूसरे के प्रति गतिमान होती है तो वासना कहलाती है और वही ऊर्जा जब स्वयं के प्रति गतिमान होती है तो समाधी कराती है| ऊर्जा एक है, उसके उपयोग दो हैं| यह मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह ऊर्जा का क्या उपयोग करता है| ब्रह्मचर्य की उत्कृष्ट साधना का सुअवसर मात्र मनुष्य के पास है क्योंकि उसके पास बुद्धि है, विवेक है, सोचने की क्षमता है, वह जानना चाहता है कि वासना दुःख का कारण है, छलावा है, भुलावा है, भटकन है| सद गृहस्थ द्वारा वंश के अंश को प्राप्त करने के लिए किया गया काम सेवन भी धर्म का प्रतीक है|

आचार्य श्री ने आगे कहा कि आत्मा की निर्मल परिणति को ब्रह्मचर्य कहते हैं| ब्रह्मचर्य को पाया नहीं जा सकता, इसे आत्मीयता से स्वीकारा जाता है| ब्रह्मचर्य वास्तविक जीवन उपलब्ध करवाने वाला मित्र है| जीवन की ईमारत बनाने वाला परम योद्धा है| ब्रह्मचर्य चेतना का ऊर्ध्वारोहण है| यह बाह्य जगत को शून्य तथा अंतर्जगत को चैतन्य करने वाला प्राण वायु है| कछुवे के समान अपनी इन्द्रियों को सिकोड़ें, वासना की जड़ों को काटें और भव रोग से मुक्त होने के लिए उत्तम ब्रह्मचर्य को स्वीकार करें| अपनी आत्मा पर विजय पाने वालों की गौरव-गाथा जितनी गायी जाये, उतनी ही कम है| वह महान आत्माएं अपनी आत्मशक्ति का प्रदर्शन नहीं करतीं, वे तो अपनी शक्ति के माध्यम से अपनी आत्मा का दर्शन करती है| मन-वचन-काय की चेष्टा से जब परिश्रम अधिक हो जाता है, तो विश्राम आवश्यक हो जाता है| यह तो लौकिक जीवन में भी आप करते हैं| ऐसे ही संसार से विश्राम की दशा का नाम ब्रह्मचर्य है|

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Editor - राजेश शर्मा : रेवाड़ी (हरि.) - 9813263002

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