ग्राम समाचार, गोड्डा ब्यूरो रिपोर्ट:- ग्रामीण विकास ट्रस्ट-कृषि विज्ञान केंद्र, गोड्डा के सभागार में समूह अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन कार्यक्रम के अन्तर्गत पोड़ैयाहाट प्रखंड के ग्राम जामबाद के प्रगतिशील किसानों को मूंगफली की वैज्ञानिक खेती का प्रशिक्षण दिया गया। वरीय वैज्ञानिक-सह-प्रधान डाॅ0 रविशंकर ने बताया कि हल्की बलुई दोमट मिट्टी, अच्छी जल निकास सुविधा एवं कार्बनिक पदार्थों से युक्त 6.5 से 7.0 पी.एच. वाली मिट्टियां मूंगफली की खेती के लिए सर्वोत्तम हैं। मूंगफली की कादरी- 6 किस्म गुच्छेदार किस्म है। 3-4 जुताई, जो 10-15 से.मी. गहराई पर हल द्वारा की गई हो। जहां तक संभव हो सके खरपतवार के नियंत्रण हेतु गर्मी के मौसम में जुताई करनी चाहिए।अंतिम जुताई के बाद पाटा चला देना चाहिए। उद्यान वैज्ञानिक डाॅ0 हेमन्त कुमार चौरसिया ने कहा कि मूंगफली के बीज को लाईन से बुआई करने से तथा खर-पतवार निकालने से और उर्वरक एवं खाद देने तथा मिट्टी चढ़ाने में सुविधा होती है। मूंगफली में टिक्का रोग पहचानने का लक्षण पत्तियों पर हल्के रंग के गोल धब्बे बन जाते हैं, जिनके चारों ओर निचली सतह पर पीले घेरे होते हैं। टिक्का रोग के अधिक प्रकोप होने पर तने तथा पुष्प शाखाओं पर धब्बे बन जाते हैं। मूंगफली की फसल को टिक्का रोग से बचाने के लिए कॉपर ऑक्सिक्लोराइड की 3 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी के हिसाब से घोलकर 2-3 छिड़काव 10 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए। सस्य वैज्ञानिक डाॅ0 अमितेश कुमार सिंह ने बुआई से पूर्व मिट्टी की जाँच कराने के लिए मिट्टी का नमूना लेने की विधि पर प्रकाश डाला। मूंगफली की फसल की वृद्धि एवं विकास के लिए 30-35 डिग्री से.ग्रे. तापमान की आवश्यकता होती है। मूंगफली के बीज को 5 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बोएं। मूंगफली की प्रजाति कादरी-6 को कतार से कतार में लगाने की दूरी 30-45 सेमी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी. होती है। मूंगफली की खेती में निराई-गुड़ाई का बहुत अधिक महत्व है। हर 15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई होना चाहिए। गुच्छेदार जातियों में मिट्टी चढ़ाना लाभदायक है। जब पौधों में फलियां बनने लग जाए, तो निराई-गुड़ाई करना चाहिए। यह किस्म 100-105 दिन में पक कर तैयार होती है तथा उपज 18-24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है। प्रगतिशील किसानों को मूंगफली की प्रजाति कादरी-6 का बीज एवं मूंगफली की वैज्ञानिक खेती पुस्तिका उपलब्ध कराया गया। मौके पर डाॅ.सतीश कुमार, डाॅ0 सूर्यभूषण, डाॅ0 प्रगतिका मिश्रा, डाॅ0 रितेश दुबे, राकेश रोशन कुमार सिंह, मनोज कुमार मंडल, जयप्रकश मंडल, पवन कुमार, मनोज मिर्धा, आकाश कुमार मंडल, आलोक कुमार आदि प्रगतिशील किसान प्रशिक्षण में सम्मिलित हुए।
Godda News: पोड़ैयाहाट में प्रगतिशील किसानों को मूंगफली खेती का प्रशिक्षण दिया गया
ग्राम समाचार, गोड्डा ब्यूरो रिपोर्ट:- ग्रामीण विकास ट्रस्ट-कृषि विज्ञान केंद्र, गोड्डा के सभागार में समूह अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन कार्यक्रम के अन्तर्गत पोड़ैयाहाट प्रखंड के ग्राम जामबाद के प्रगतिशील किसानों को मूंगफली की वैज्ञानिक खेती का प्रशिक्षण दिया गया। वरीय वैज्ञानिक-सह-प्रधान डाॅ0 रविशंकर ने बताया कि हल्की बलुई दोमट मिट्टी, अच्छी जल निकास सुविधा एवं कार्बनिक पदार्थों से युक्त 6.5 से 7.0 पी.एच. वाली मिट्टियां मूंगफली की खेती के लिए सर्वोत्तम हैं। मूंगफली की कादरी- 6 किस्म गुच्छेदार किस्म है। 3-4 जुताई, जो 10-15 से.मी. गहराई पर हल द्वारा की गई हो। जहां तक संभव हो सके खरपतवार के नियंत्रण हेतु गर्मी के मौसम में जुताई करनी चाहिए।अंतिम जुताई के बाद पाटा चला देना चाहिए। उद्यान वैज्ञानिक डाॅ0 हेमन्त कुमार चौरसिया ने कहा कि मूंगफली के बीज को लाईन से बुआई करने से तथा खर-पतवार निकालने से और उर्वरक एवं खाद देने तथा मिट्टी चढ़ाने में सुविधा होती है। मूंगफली में टिक्का रोग पहचानने का लक्षण पत्तियों पर हल्के रंग के गोल धब्बे बन जाते हैं, जिनके चारों ओर निचली सतह पर पीले घेरे होते हैं। टिक्का रोग के अधिक प्रकोप होने पर तने तथा पुष्प शाखाओं पर धब्बे बन जाते हैं। मूंगफली की फसल को टिक्का रोग से बचाने के लिए कॉपर ऑक्सिक्लोराइड की 3 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी के हिसाब से घोलकर 2-3 छिड़काव 10 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए। सस्य वैज्ञानिक डाॅ0 अमितेश कुमार सिंह ने बुआई से पूर्व मिट्टी की जाँच कराने के लिए मिट्टी का नमूना लेने की विधि पर प्रकाश डाला। मूंगफली की फसल की वृद्धि एवं विकास के लिए 30-35 डिग्री से.ग्रे. तापमान की आवश्यकता होती है। मूंगफली के बीज को 5 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बोएं। मूंगफली की प्रजाति कादरी-6 को कतार से कतार में लगाने की दूरी 30-45 सेमी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी. होती है। मूंगफली की खेती में निराई-गुड़ाई का बहुत अधिक महत्व है। हर 15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई होना चाहिए। गुच्छेदार जातियों में मिट्टी चढ़ाना लाभदायक है। जब पौधों में फलियां बनने लग जाए, तो निराई-गुड़ाई करना चाहिए। यह किस्म 100-105 दिन में पक कर तैयार होती है तथा उपज 18-24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है। प्रगतिशील किसानों को मूंगफली की प्रजाति कादरी-6 का बीज एवं मूंगफली की वैज्ञानिक खेती पुस्तिका उपलब्ध कराया गया। मौके पर डाॅ.सतीश कुमार, डाॅ0 सूर्यभूषण, डाॅ0 प्रगतिका मिश्रा, डाॅ0 रितेश दुबे, राकेश रोशन कुमार सिंह, मनोज कुमार मंडल, जयप्रकश मंडल, पवन कुमार, मनोज मिर्धा, आकाश कुमार मंडल, आलोक कुमार आदि प्रगतिशील किसान प्रशिक्षण में सम्मिलित हुए।
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