ग्राम समाचार, बौंसी, बांका। मंदार पर्वत सिर्फ धार्मिक आस्थाओं से ही महत्वपूर्ण नहीं है वरन यहॉं कई प्रकार के संजीवनी बूटियॉं एवं औषधीय पादप भी पाये जाते हैं । यही कारण है कि, पहले यहॉं बंगाल एवं उड़ीसा से सैलानी स्वास्थ्य लाभ के लिये आकर प्रवास करते थे । शोध लेखक मनोज कुमार मिश्र ने बताया कि, इस पर्वत पर 7वीं सदी में चोल शासक आदित्यसेन ने प्रवास किया था। जिससे यहॉं की बूटियों के सेवन एवं कुंडों में स्नान करने से उनकी चर्म व्याधि ठीक हो गयी थी । तत्पश्चात
उनकी पत्नी रानी कोण देवी ने पापहरनी तालाब को बड़े रूप मे खुदवाकर उसे महत्वपूर्ण बनाया । पर्वत पर विभिन्न प्रकार की कँटीली झाड़ियॉं हैं। जिनमें लगने वाले फूलों एवं बीजों से गंभीर प्रकार के रोगों का शमन होता है । चट्टानों पर उगनेवाले हरित जैविक पौधों में जलजमनी जैसी शक्तियॉं निहित हैं। जिनसे सुखंडी रोगों का ईलाज संभव है। पर्वत पर गुरीच , चिरौता , ध्रुव , आक धतूरा , बेर , कटेल ,कनौदा , गुल्लर , जामुन , तमाल ,इमली , हरसिंगार , बाकस , फरद , आदि के पेड़ व पौधे पाये जाते हैं ।
कहते हैं 1505 ई. में आये चैतन्य महाप्रभु का ज्वर यहीं के औषधीय पौधों के पत्तों के रस पीने से ठीक हुआ था । पर्वत पर नरसिंह भगवान को लगनेवाले पायस भोग के लिये दूध देनेवाली गायें भी पर्वत पर ही उगनेवाली औषधीय घासों का सेवन करती हैं और अमृततुल्य दुग्ध प्रदान करती हैं । साहित्य मनीषी आनंद शंकर माधवन भी यहॉं पाये जानेवाले जीवनी पादपों के विषय में यदा कदा चर्चा किया करते थे , कहते थे मैंने कभी भी आधुनिक चिकित्सा की दवाईयॉं नहीं ली । कभी जरूरत होती थी तो मौनी बाबा के पास आनेवाले पं. रामेश्वर झा से बूटियॉं लेकर सेवन करते थे । इस तरह से मंदार अपार प्राकृतिक संपदाओं का भंडार है , इसके पुरातन औषधीय महत्व को देखते हुये ही सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग ने इसे अपने जिम्मे लिया है ।
कुमार चंदन, ग्राम समाचार संवाददाता, बौंसी।
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