ग्राम समाचार,बौंसी,बांका।
भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स्वर्णयुग कहा जाता है। यही वो दौर था। जब इन संत कवियों ने मानवीय मूल्यों की पक्षधरता की और जन जन में भक्ति का संचार किया। इन्हीं में से एक थे संत रविदास (रैदास)। संत रविदास तो संत कबीर के समकालीन व गुरूभाई माने जाते हैं। उस दौर के संतों की खास बात यही थी कि, वे घर बार और सामाजिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़े बिना ही सहज भक्ति की ओर अग्रसर हुए और अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए ही भक्ति का मार्ग अपनाया। संत रविदास ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जागरूकता लाने का प्रयास भी किया। सही मायनों में देखा जाए तो, मानवतावादी मूल्यों की नींव संत रविदास ने रखी। वे समाज में फैली
जातिगत ऊंच-नीच के घोर विरोधी थे और कहते थे कि, सभी एक ईश्वर की संतान हैं। जन्म से कोई भी जात लेकर पैदा नहीं होता। इतना ही नहीं वे एक ऐसे समाज की कल्पना भी करते थे, जहां किसी भी प्रकार का लोभ, लालच, दुख, दरिद्रता, भेदभाव नहीं हो। इसी क्रम में बौंसी प्रखंड स्थित परमेश्वर लाल खेमका सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में संत रविदास (रैदास) की जयंती शनिवार को मनाई गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता विद्यालय के जयंती प्रमुख हरि किशोर पंडित ने की। इस अवसर पर आचार्य विजय कुमार झा ने संत रविदास के जीवनी पर प्रकाश डालते हुए बच्चों को उनके बारे में बताया। इस अवसर पर आचार्य अमरकांत मिश्र, सुमन प्रसाद सिन्हा, रिया कुमारी, आचार्य दीपक कुमार, अनिता कुमारी, शिखा झा, सुनीता कुमारी, ललिता कुमारी सहित अन्य मौजूद थे।
कुमार चंदन, ग्राम समाचार संवाददाता, बौंसी।
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